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________________ [ ३६ ] संसार बढ़ाया इस न्यायानुसार आपके गुरुजी न्यायालो. निधिजीने इतने उत्सूत्र भाषणों में कितना ससार बढ़ाया होगा सो तो आप लोगोंको भी न्याय दृष्टि में हृदयमें विचार करना उचित है और अब आप लोग भी उसी तरहके उत्सूत्र भाषणोंसें मिथ्या झगड़ा करते हुए श्रोजिने. श्वर भगवान् की आज्ञानुसार मोक्ष मार्गको हेतुरूप सत्य. बातोंका निषेध करके श्रोजिनाज्ञा विरुद्ध संसार वृद्धि की हेतु. भूत मिथ्या कल्पित बातोंको स्थापन करके बाल जीवोंकी सत्यबात परसे श्रद्धाभ्रष्ट करते हो और मिथ्यात्व को बढ़ाते हो सो कितना संसार वढ़ावोगे सो तो श्रीज्ञानीजी महा. राज जाने -यदि आपको संसार वृद्धिका भय होवे और श्रीजिनाज्ञाके आराधन करने की इच्छा होवे तो जमालिके शिष्योंकी तरह आपसी करों तथा न्यायाम्भोनिधिजीके समुदायवालोंको भी ऐसेही करना चाहिये क्योंकि जमा. लिके उत्सूत्र परूपनाको उन्ह के शिष्यों को जबतक मालूम नही थी तबतक तो जमालिके कहने मुजबकी सत्य माना परन्त जब अपने गुरुको श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध उत्सूत्र परुपनाकी मालूम होगई तब उसीको छोड़ करके श्रीवीरप्रभुजीके पास आकर सत्यग्रा ही होगये तैसेही न्यायाम्भो. निधिजीके शिष्यवर्गमें भो जो जो महाशय आत्नार्थी सत्य ग्राही होवेंगे सो तो दृष्टि रागका पक्ष को न रखके अपने गुरुकी उत्सूत्र भाषणकी बातोंको छोड़कर शास्त्रानुसार सत्य बातोंको ग्रहण करके अपनी आत्माका कल्याण करेंगे और भक्तजनको करावेंगे। इति छठे महाशयजोके लेखकी संक्षिा समीक्षा समाप्ता । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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