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________________ [ ३३५ ] हेतुभूत मिथ्या बातको छोड़ करके आत्मकल्याणके लिये सत्य बातोंके तत्त्वग्राही होना चाहिये और छठे महाशय जीने ढूंढियांको भी अपने सामिल करके सामायिकसम्बन्धी तथा कल्याणक सम्बन्धी और जैन सिद्धान्त समाचारी सम्बन्धी लिखके अपने पक्षकी बात जमानेका परिश्रम किया इसलिये मेने भी सामायिक सम्बन्धी और जैन सिद्धान्त समाचारी सम्बन्धी ऊपरमें इतना लिखके सत्यग्राही भव्यजीवोंको संक्षिप्तसे शास्त्रार्थ दिखाया है और कल्याणक सम्बन्धी पर्युषणका विषय पूरा हुवे बाद पीछे से लिखने में आवेगा सो पढ़नेसे सर्व निर्णय हो जावेंगा ;___ अब छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजोको मेरा ( इस ग्रन्थकारका) इतनाही कहना है कि आषाढ़चौमासीसें पचास दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनेवालोंको आपने आज्ञा भङ्गका दूषण लगाया तब श्रीलश्करसे श्रीबुद्धिसागरजीने आपको पत्रद्वारा शास्त्र का प्रमाण पूछा उन्हको शास्त्रका प्रमाण आपने बताया नही और छापे में भी पर्युषणा विषयसम्बन्धी शास्त्रार्थ पूर्वक निर्णय करना छोड़ करके अपनी बात जमानेके लिये निष्प्रयोजनकी अन्य अन्य बातोंको लिखके प्रगट करी और अन्यायसें विशेष झगड़ा फैलानेका कारण किया इसलिये मेने भी आपके अन्यायको निवारण करनेके लिये मुख्य मुख्य बातोंका संक्षिप्त ते खुलासा करके सत्य तत्त्वग्राही सज्जन पुरुषोंको दिखाया हैं जिसको पढ़नेसे न्याय अन्यायका तथा श्रोजिनाज्ञाके आराधक विराधकका निर्णय निष्पक्षपाती पाठकवर्ग स्वयं कर लेवेंगे और मरिदिने एक उत्सूत्र भाषणसे एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम जितना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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