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________________ [ २९६ ] यो पूजता मानताके लिये पण्डिताभिमान के जोरखें. उत्सून भाषण से संसार वृद्धिका भय न करते बालजीवोंकों कदाग्रहमें गेरके मिथ्यात्वको बढानेवाले आप हो सोतो. श्रीजैमशास्त्रोंके तात्पर्यको जाननेवाले विवेकी सज्जन अवश्य ही मानेंगे यह तो प्रसिद्धही न्यायकी बात है ; तीसरा यह है कि दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषण पर्व करने संबन्धी पञ्चाङ्गीका पाठ पूरके मानने को छठे महाशयजी आप तैयार हुए हो परन्तु अपनी तरफसें पंचांगीका पाठ बता सकते नहीं हो इससे यह भी सिद्ध होगया कि इस वर्तमान कालमें दो श्रावण अथवा दो भाद्रपद होने से पर्युषणापर्व कबकरना जिसकी आपको अबीतक शास्त्रोंके प्रमाण मुजब पूरे पूरी मालूम नहीं है तो फिर दूसरों को आज्ञा भंगका दूषण लगाके निषेध करना यहतो प्रत्यक्ष आपका महासिघ्या उत्सूत्र भाषणरूप वृषा ही झगड़े को बढानेवाला हुवा सो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ; Dund . चौथा औरभी सुनो यहतो प्रसिद्ध बात है कि आषाढ चौमासीसे ५० दिने श्रीपर्युषण पर्वका आराधन वार्षिक कृत्यादिसें करना कहा है इस न्यायके अनुसार दूसरे श्रावण में अथवा प्रथम भाद्रपदमें ५० दिने पर्युषणा करना सोतो अल्प बुद्धिवाले भी समझ सक्ते है । तो फिर क्या छठे महाशयजीकी इतनी भी बढिनहीं है सो ५० दिने दूसरे श्रावण में अथवा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणा करने संबंधी पञ्चाङ्गी का पाठ पूछते है । इसपर कोई कहेगा कि छठे महाशयजी की ५० दिने पर्युषणा करनेकी बुद्धि तो हैं । इसपर मेरेको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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