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________________ [ २९ ] करनी चाहिये। तथापि पर्युषणा करने योग्यक्षेत्र नहीं मिले तो विजन ( जङ्गल ) में भी वृक्ष नीचे पचास वें दिन जरूर पर्युषणा करनी परन्तु पचासमें दिमको रात्रिको उल्लङ्घन नही करना यह बात तो प्रसिद्ध है इसीके सम्बम्धर्मे इन्ही ग्रन्थके आदिमें श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रकी वृत्तिका पाठ पृष्ठ १८१९ में और श्रीवृहत्कल्पवृत्तिका पाठ पृष्ठ २१ से २५ तक, और श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रकी चूर्णिका पाठ पृष्ठ ९१ से २४ तक, और श्रीनिशीथसत्रकी चूर्णिका पाठ पृष्ठ १५ सें तक, तथा तद्भावार्थ पृष्ठ १०० से १०५ तक छप गया है, उपरोक्त शास्त्रों में आषाढ़ चौमासीसे पांच पांच दिनोंकी वृद्धि करते (दशवें पञ्चकमें) पचासवें दिने प्रसिद्ध पर्युषणा मासवृद्धिके अभावसे चन्द्रसंवत्सर में करनी कही है और मासवृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सरमें पांच पांच दिनोंकी वृद्धि करते (चौथे पञ्चकमें)वीशवें दिने प्रसिद्ध पर्युषणा कही सो प्राचीनकालाश्रय पूर्वधरादि उग्रविहारी महाराजोंके लिये श्रीजैनज्योतिषके पञ्चाङ्ग मुजब वर्त्तनेके सम्बन्धमें कही परन्तु अबी इस वर्तमानकालमें जैन पञ्चाङ्ग के अमावसे और पड़ते कालके कारणसे ऊपरका व्यवहार श्रीसन्धकी आज्ञासै विच्छेद हुवा है सोही दिखाता हूं। श्रीतीत्योगालिय (तीर्थोद्गार) पयन्नामें कहा है -यथा ;वीसदिणेहिं कप्पो, पंचगहाणीय कप्पठवणाय, नवसय तेणउएहिं, वुच्छि का संघआणाए ॥१॥ देखिये ऊपरकी गाथामें वीश दिनका कल्प, तथा पांच पांच दिनकी वृद्धि करके अज्ञातपर्युषणास्थापन करनेसे पिछाड़ी कालावग्रह संबंधी श्रीवहत्कल्पवृत्ति, श्रीदशाश्रुतचूर्णि, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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