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________________ [ २९० ] rear अहिगमासे चाउमासीओ ॥ पसास इमे दिने, पज्जोसवणा कायदा न असीमे, इति · भावार्थ:-श्रावण और भाद्रपद मास अधिक होतो भी आषाढ़ चौमासीसें पचासमै दिन पर्युषणा करना चाहिये परन्तु अशीमें दिन नही करना । इस जगह सज्जन पुरुषों को विचार करना चाहिये कि ऊपरोक्त तीनों शास्त्रों के पाठ आगमानुसार तथा युक्ति पूर्वक होने से छठे महाशयजीको प्रमाण करने योग्य थे तथापि गच्छका पक्षपात के और पण्डिताभिमानके जोरसें ऊपरोक्त शास्त्रों के पाठोंको प्रमाण न करते हुवे श्रीकल्पसूत्रके मूल पाठको तथा श्रीबृहत्कल्पचूर्णिके पाठको छुपाकरके मायावृत्तिसें श्रीजिनपति सूरिजी की समाचारीके पाठ पर अपने विद्वत्ताको चातुराई दिखाई है कि (यही तो विवादास्पद है कि श्रीजिनपति सूरिजीने समाचारीमें जो यह पूर्वोक्त हुकमजारी किया है कौनसे सूत्रके कौनसे दफे मुजिब किया है ) उठे महाशयजीके इस लेख पर मेरेको वड़ाही आश्चर्य सहित खेदके साथ लिखना पड़ता है कि श्रीवल्लभविजयजीको अनुमान २२ । २३ वर्ष दीक्षा लिये हुए है तथा कुछ व्याकरणादि भी पढ़े हुए सुनते हैं परन्तु इस जगह तो श्रीवल्लभविजयजीनें अपनी खूब अज्ञता प्रगट करी हैं क्योंकि श्रीनिशीथसूत्र के लघु भाष्य में, १ तथा वृहद्भाष्य में २ और पूर्णिमें ३ श्रीवृहत्कल्पसूत्रके लघु भाष्यमें ४ तथा बृहत्भाष्यमें ५ और चूर्णिमें ६ श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रमें 9 तथा चूर्णिमें ८ श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रमें ९ तथा तद्वृत्ति में १० और श्रीस्थानाङ्गजी सूत्र की वृत्ति में १९१ इत्यादि अनेक शास्त्रों में कहा है कि पचास दिने अवश्य ही पर्युषणा , Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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