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________________ [२४] . शेष शास्त्रकी बात अंगीकार करनेके समय सामान्य शास्त्रकी बात गाण्यताभावमें रहती है. यह न्याय विद्वानों में प्रसिद्धही है । और. भी दोखिये-जैसे भगवतीसूत्र बडा कहा जाता है, तो भी उसमें बहुत बातोंका कथन होनेसे संयमकी क्रियासंबंधी सामान्यशास्त्र कहा जावे, और आचारांग, दशवकालिक छोटे सूत्र हैं, तो भी उस में मुख्यताले संयमविधान होनेसे संयमक्रियासंबंधी विशेष शास्त्र कहे जाते हैं । इसीतरह समवायांगसूत्र में अनेक बातोंका कथन होनेसे पर्युषणासंबंधी समवायांगसूत्र सामान्य शास्त्र है, और क. ल्पसूत्रमें तो खास पर्युषणासंबंधी सामान्य व विशेष दोनो प्रकारसे विस्तारपूर्वक खुलासाके साथ वर्षास्थितिरूप व वार्षिकपर्व रूप दोनों पर्युषणाका अधिकार है. इसलिये पर्युषणासंबंधी कल्पसूत्र विशेष शास्त्र है। यही कल्पसूत्ररूप विशेष शास्त्रको पर्युषणामें चतुर्विधसंघके मांगलिकके लिये वर्षोंवर्ष प्रत्येक गांव-नगरादिमें वांचनेमें आता है । उस विशेषशास्त्रके पर्युषणासंबंधी मूलमंत्ररूप पाठको छोडना और समवायांगके सामान्यपाठपर दृढ आग्रह करना विवेकीविद्वानोंको योग्यनहीं है। मगर अल्पक्ष बिना समझवाले अपना आग्रह न छोडें तो उनकी खुशीकी बात है, इसको विशेष तत्वक्ष जन स्वयं विचार लेंगे. २६-पर्युषणासंबंधी हमेशां नियत नियम ५० दिनका है . या ७० दिनका है ? सर्व शास्त्रोंमे ५० दिनको उल्लंघन करना निवारण किया है, इसलिये ५० दिनका नियत नियम है। और ७० दिनसे ज्यादे होवे उसका कोईभी दोष किसी शास्त्रमें नहीं कहा, इसलिये ७० दिनका हमेशां नियत नियम नहीं है। १. देखो-पहिले २० दिने पर्युषणा करतेथे, तबभी पि. छाडी १०० दिन रहतेथे, इसलिये ७० दिनका नियत नियम नहीं है। ... २. अबीभी श्रावण भाद्रपद या आसोज बढे तब तपग छके पूर्वाचार्योक पाक्यसेभी ५० दिने पर्युषणा होवें तब पिछाडी १०० दिन रहते हैं। इसलियेभी ७० दिन रहनेका नियत नियम नहीं है। ३. पचास दिन उलंघेतोप्रायश्चित्त कहा है, मगर ७०दिन उल्लंघे तो प्रायश्चित्त नहीं कहा, इसलियेभी. ७० दिनकी नियत नि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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