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________________ [२३] महीने होनेका दोष बतलाकर, १२ महीने ठहरानेकेलिये महीनेको छोड देना सो सर्वथा अनुचित है, इसको विशेष तत्त्वक्ष जन स्वयं विचार सकते हैं। २३- पर्युषणासंबंधी कल्पसूत्रका पाठ वार्षिक कार्योंके लिये है, या वर्षास्थितिके लिये है ? । कल्पसूत्रका पर्युषणासंबंधी पाठ वर्षास्थितिके साथही वार्षिक कार्योंकेलिये है, जिसपरभी उसको सिर्फ वर्षास्थितिरूप ठहरा. कर वार्षिक कार्य निषेध करते है सो अनेकार्थ युक्त आगमपाठके अर्थ को उत्थापनेवाले बनते है. जैसे " णमो अरिहंता णं" पदके अर्थमे कर्मशत्रुको जितनेवाले अरिहंत भगवान्को नमस्कार करने का अर्थ अनादिसिद्ध है, जिसपरभी कर्मशत्रुके अर्थ नहीं माननेवालेको अज्ञानी समझाजाता है । तैसे ही कल्पसूत्रके ५० दिने पर्युषणाकरने संबंधी पाठमें वार्षिक कार्य तो अनादि सिद्ध है जिसपरभी वार्षिक कार्योको नहीं मानने वालोको अज्ञानी या हठवादी समझने चाहिये। २४- भगवान् किसीप्रकारकेभी पर्युषणा करतेथे या नहीं? जिनकल्पी मुनियोंके व स्थिविरकल्पी मुनियोंके आचारमें बहुत भेद है, और भगवान्तो अनंत शक्तियुक्त कल्पातित हैं, इसलिये भगवानके आचारमेतो विशेष भेद है. तो भी वर्षारुतमें वर्षास्थितिरूप पर्युषणा तो सबकोई करते हैं । और स्थिविर कल्पी मुनियोंके तो वर्षास्थितिके साथ चौमासी व वार्षिक पर्व करने वगैरहका अधिकार प्रसिद्धही है । जिसपरभी कल्पसूत्र में पर्युषणा शब्दमात्रको देखकर अतीव गहनाशयवाले सूत्रार्थके भावार्थको गुरुगम्यतासे समझे बिना भगवान्कोभी वार्षिक प्रतिक्रमणादिकरने वाले ठहराना, या ५० दिनकी पर्युषणाको वार्षिक कार्यरहित ठहराना सो अज्ञानता है. इसकोभी विवेकीजन स्वयं विचार सकते हैं। २५- पर्युषणासंबंधी सामान्य व विशेषशास्त्र कौनहै ? जिस शास्त्र में मुख्यतासे एक विषयको विशेष रूपसे खुला. साके साथ कथन किया होवे, उसको विशेष शास्त्र कहते हैं । और जिस शास्त्रमें बहुत बातोंका कथन होवे, उसको सामान्य शास्त्र कहते हैं । यद्यपि यथा अवसर दोनों मान्य हैं, मगर सामान्यशास्त्रसे विशेषशास्त्र ज्यादे बलवान होता है. इसलिये मुख्यतासे वि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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