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________________ [ २५५ ] मुजब धर्तने वाले गच्छपक्षी दृष्टिरागी विचारे भोले जीवोंके कैसे कैसे हाल होवेंगे सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जानें-- ___ उपरमें उत्सूत्र भाषक सम्बन्धी इतना लेख लिखनेका कारण यही है कि उत्सूत्रभाषक पुरुष प्रीतीर्षपती श्री तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी और अपने पूर्वजोंकी आशातना करने वाला और भोले जीवोंको भी उसी रस्ते पहुंचानेके कारणसे संसारकी वृद्धि करता है जिससे उसीकों पर अवमें तथा भवो भवमें नरकादि अनेक विडम्बना भोगनी पड़ती है इसलिये महान् पश्चात्तापका कारण बनता है और इस भवमें भी उत्सूत्र भाषकको अनेक उपद्रव भोगने पड़ते है, तैसे ही उठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजीने भी उत्सूत्र भाषण करके श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधक पुरुषोंको मिथ्या माताअङ्गका दूषण लगाकर जैनपत्र प्रसिद्ध कराके झगरेका मूल खड़ा किया और बड़े जोरके साथ पुनः जैनपत्रमें फैलाया जिससे आत्मार्थी निष्पक्षपाती सज्जनपुरुष तथा अपने [ छठे महाशयजीके ] पक्षधारी श्रीतपगच्छके सज्जन पुरुष और सास छठे महाशयजीके मांडलीके याने श्रीन्यायाम्भोनिधिजीके परिवार वाले भी कितने ही पुरुष छठे महाशयजी श्रीवल्लभाविजयजीपर पूरा अभाव करते है कि ना एक वथा जो संपसे कार्य होतेथे जिसमें विघ्नकारक झगड़ा खड़ा किया है इसलिये छठे महाशयजीको इन भवमें भी पूरे पूरा पश्चात्ताप करनेका कारण होगया है तथा करते भी है। . और उत्सूत्र भाषण करके दूसरोंको मिया दूषण लगाः . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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