SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २३५ ] और अनन्त कालचक्र हुए अधिक मास भी होता रहता है तैसेही अनन्त चौवीशी होगई जिसमें श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणक भी होते रहते हैं परन्तु किसीने भी कल्याणक बढ़ जानेके भयसे अधिक मासकी गिनती निषेध नही करी है तथापि इस पञ्चमें कालके विद्यासागर न्यायरत्नका विशेषण धरानेवाले श्रीशान्तिविजयजी इतने बड़े विद्वान् कहलाते भी जैन शाखोंके गम्भीरार्थको समके बिना कल्याणक बढ़ जानेके भयसे अधिक मासकी गिनती निषेध करते हैं यह भी एक अलौकिक आश्चर्यकी बात है क्योंकि जैन ज्योतिषशास्त्रानुसार मासवृद्धिके कारणसे जब दो पौष अथवा दो आषाढ़ होते थे तब उस समय कोई भव्य जीवोंको श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणककी तपश्चर्यादि करनेका इरादा होता था तब पहिले श्रीपानीजी महाराजकों पूछके पीछे करते थे जिसमें दो मासके कारणसें कोई भगवान्का प्रथम मासमें कल्याणक होया होवे उसी कल्याणकको प्रथम मासमें आराधन करते थे और कोई भगवान्का दूसरे मासमें कल्याणक होया होवे उसी कल्याणकको दूसरे मासमें माराधन करते थे जिससे जिन जिन भगवान् का जो जो कल्याणक मास वृद्धिके कारणसे प्रथम मासमें अथवा दूसरे मासमें होया. होवे उसीको उसी मुजब श्रीज्ञानीजी महाराजको पूछके आराधन करते थे, पक्षवत, अर्थात् अमुक भगवान् का अमुक कल्याणक अमुक मासके प्रथम पक्षमें होया होवे उसीकों प्रथम पक्षमें आराधन करते थे और दूसरे पक्ष में होया होवे उसीको दूसरे पक्षमें आराधनं करते थे उसी तरह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy