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________________ [ २३४ ] फिर तीर्थङ्करोंके कल्याणिक १२० से भी ज्यादे गिनना होगा कभी नही इस हेतु से भी अधिक मास नही गिना जाता ) इस लेख की समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुँ जिसमें प्रथमतो उपरके लेखमें न्यायरत्नजीनें अधिकमासको गिनती में लेने वालों को तीसरा दूषण लगाया इस पर तो मेरे को इतनाही कहना उचित है कि न्यायरत्नजीनें श्री अनन्ततीर्थङ्कर गगधरादि महाराजोंकी आशातना करके खूब मिथ्यात्व बढ़ाया है क्योंकि श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराज अधिक मासको गिनतीमें मान्य करते हैं सो अनेक सिद्धान्तों में प्रसिद्ध है और न्यायरत्नजी अधिक मासको गिनती में मान्य करने वालोंको दूषण लगाते हैं जिससे श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी प्रत्यक्ष आशातना होती है इसलिये जो न्यायरत्नजीको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातनायें अनन्त संसार वृद्धिका भय लगता हो तो अधिक मासको गिनती में लेने वालोंकों दूषण लगाया जिसकी आलोचना लेकर अपनी आत्माको दुर्गति से बचाना चाहिये आगे न्यायरत्नजीकी जैसी इच्छा मेरा तो धर्मबन्धुकी प्रीतिसें लिखना उचित है सो लिख दिखाया है और अधिक मासको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने गिनती में मान्य किया है उसीके अनुसार कालानुसार युक्तिपूर्वक वर्त्तमानमें भी अधिक मासको आत्मार्थी पुरुष मान्य करते हैं जिन्होंको एक भी दूषण नही लग सकता है परन्तु कल्पित दूषणोंकों लगाने वालों को तो उत्सूत्र भाषणरूप अनेक दूषणोंके अधिकारी होना पड़ता है सो आत्मार्थी विवेकी सज्जन पुरुष इन्ही पुस्तक के पढ़नेसे स्वयं विचार सकते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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