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________________ [ २२८ ] होते हैं जब अधिकमास जिस संवत्सरमें होता है तब उस संवत्सरमें तेरह मास होनेसे संवत्सरका नाम भी अभिवर्द्धित कहा जाता है-अधिक मासको गिनतीमें लिया जिससे संवत्सरका भी प्रमाण वढ़ गया और युगकी पूरतीका भी बरोबर हिसाब मिलगया-अधिक मास अनादिकाल हुए होता रहता है तथा मासवृद्धि हो अथवा न हो तो भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने श्रीपर्युषणापर्वका आराधन वर्षा ऋतुमें ही करना कहा है यह बात आत्मार्थी विवेकी विद्वानोंसे छुपी हुई नही है याने प्रसिद्ध है इसलिये श्रीपर्युषणापर्व अधिक मास हो तो भी वर्षा ऋतुके सिवाय और ऋतुयोंमें कदापि नही हो सकते हैं और मुसल्मान लोग तो सिर्फ एक चन्द्र दर्शनकी अपेक्षासे २९ । ३० दिनका महिना मान्यकरके बारह महिनोंके ३५४ दिनका एक वर्ष मानते है और अधिक मासका भिन्न व्यवहारको नही मानते हैं याने चन्द्रके हिसाबसें बारह बारह महिनोंका एक एक वर्ष मानते चले जाते हैं परन्तु अपने माने मास तारीख नियत ताजियें भी करते रहते हैं और जैन तथा दूसरे हिन्दू अधिक मासको मान्य करके तेरह मासोंका वर्ष मानते हैं तथा अपने माने मास, तिथि नियत पर्व भी करते है इसलिये जैन तथा दूसरे हिन्दूयांके तो ऋतु, मास, तिथि नियत पर्व अधिक मास होतो भी फिरते हुए नही चले जाते है परन्तु मुसल्मान लोग अधिक मासको नही मानते हुए अनुक्रमे सीधा हिसाब से ही वर्त्तते है इस लिये लौकिकमें अधिक मास होनेसें मुसलमानोंके ताजिये अमुक ऋतुमें तथा अमुक लौकिक मासमें होते हैं यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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