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________________ [ २२५ ] चाय्याने अनेक शास्त्रों में अधिकमासको सर्वथा करके परिपूर्ण रीतिसें विस्तारपूर्वक खुलासाके साथ निश्चय करके अवश्यही गिनतीमें लिया है. जिसमें श्रीचन्द्रप्रज्ञप्ति १ तथा एत्ति २ श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति ३ तथा वृत्ति ४ श्रीज्योतिषकरण्ठ पयन्ना ५ तथा ऐत्ति ६ श्रीप्रवचनसारोद्धार ७ तथा वृत्ति श्रीसमवायाङ्गजीसूत्र तथा वृत्ति १० श्रीजम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति ११ तथा तीनकी दो (२) वृत्ति १३ इत्यादि अनेक शास्त्रोंके पाठ न्यायरत्नजीने देखे है जिसमें अधिक मासको गिमतीमें लिया है जिसमें भी श्रीज्योतिषकरण्पयन्नाकी वृत्ति तो न्यायरत्नजीने एकवार नही किन्तु अनेकवार देखी है उसी में तो विशेष करके समयादि कालकी व्याख्या किवी है कि असंख्याता समय जानेसे एक आवलिका, १, ६७, ७, २१६, आवलिका जानेसे एकमुहूर्त होता है श्रीश मुहूर्तसें एक अहोरात्रि रूप दिवस होता है ऐसे पन्दरह दिवस जानेसे एकपक्ष होता है दो पक्षसें एकमास होता है दो माससे एक ऋतु होता है छ ऋतुयोंसें एक सम्वत्सर होता है इसी ही तरहसे नक्षत्र सम्वत्सरके, चन्द्रसम्वत्सरके, ऋतु सम्वत्सर के, सूर्यसम्वत्सरके, और अभिवर्द्धितसम्वत्सरके, मुहूौंका जूदा जूरा हिसाब विस्तारपूर्वक दिखाकर पांच सम्वत्सरोंका एक युगके ५४९०० मुहूर्त दिखाये हैं जिसमें एक युगके पांच संवत्सरोमें दो अधिक नासके भी मुहूतोंकी गिनती साथमें लेनेसेंही ५४९०० मुहूर्तका हिसाब मिलता है अन्यथा नहीं इस तरहसें कालकी व्याख्या समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, वर्ष, युग, पूर्वाङ्ग, पूर्व, पल्योपम, सागरोपम और उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी कालसें अनन्तकालकी २८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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