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________________ [ २२४ ] हिसाब से हमेशां उक्त पर्व फिरते हुवे चले जायगे जैसे मुसलमानोंके ताजिये हर अधिकमास में बदलते रहते हैं ) न्यायरत्नजीका इस लेखपर मेरेको बड़ाही आश्चर्य सहित खेद उत्पन्न होता है और न्यायरत्नजीकी वड़ीही अक्षता प्रगट दिखती है सोही दिखाता हूं जिसमें प्रथम तो आश्चर्य उत्पन्न होनेका तो यह कारण है कि स्याद्वाद, अनेकांत, अविसंवादी, अनन्तगुणी, परमोत्तम ऐसे श्रीसर्वज्ञ भगवान् श्रीजिनेन्द्र महाराजों के कथन करे हुवे अत्युत्तम अहिंसा धर्मके वृद्धिकारक ऊर्द्धगतिका रस्तारूप धर्मध्यान दानपुण्य परोपकारादि उत्तमोत्तम शुभकायका निधि शान्त चित्तको करने वाले और पापपङ्क ( कर्मरूप मेल) को नष्ट करने वाले श्रीपर्युषण पर्व के साथ उपरोक्त गुणो से प्रतिकुल मिथ्यात्वी और वितविटंबक पाखंडरूप अधर्मकी वृद्धिकारक तथा छ (६) कायके जीवोंका विनाश कारक नरकादि अधोगतिका रस्तारूप आर्त्तरौद्रादि युक्त ताजियांका दृष्टान्त न्यायरत्न जीनें दिखाया इसलिये मेरेकों आश्चर्य उत्पन्न हुवा कि जो न्यायरत्नजीके अन्तःकरण में सम्यक्त्व होता तो चिन्तामणिरत्नरूप श्रीपर्युषण पर्व के साथ काचका टुकड़ारूप ताजियांका दृष्टान्त लिखके अपनी कल्पित बातको जमानेके लिये अधिक मासका निषेध कदापि नही दिखाते इस बातकों पाठकवर्ग भी विचार लेना ; और वड़ा खेद उत्पन्न होनेका तो कारण यह है कि श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्थ्यांने और खास न्यायरत्नजीके पूज्य अपने श्रीतपगच्छके ही पूर्वा · Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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