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________________ दान, पुण्य, परोपगार, सात क्षेत्रमें द्रव्यखर्चना, जीव दया, देवपूजा, गुरुवन्दनादि देवगुरुभक्ति, साधर्मिकवात्सल्य, विनय, वैयावच्च, आत्मसाधनरूप स्वाध्याय, ध्यानादि, श्रावकके और धर्मोपदेशका व्याख्यानादि साधुके उचित जो जो शुभकार्य है उन्ही शुभकार्योंकों अधिक मासको नपुंसक कहके त्याग देनेका चारों महाशयोंने उपदेश किया होगा। भक्तजनोंको त्यागनेका नियम भी दिलाया होगा, आपने भी त्यागे होवेंगे और अधिक मासको नपुंसक कहके शुभकार्य चारों महाशय त्यागनेका ठहराते है इससे अशुभ कार्यों का ग्रहण होता है इसलिये उपरोक्त कार्योसे विरुद्ध याने अधिक मासको नपंसक जानके सर्व शुभकार्य त्यागते हुए--निन्दा, ईर्षा, झगड़ादि अशुभकार्य करनेका चारों महाशयोंने उपदेश किया होगा । दृष्टि रागियोंसे करानेका नियम भी दिलाया होगा और अपने भी ऐसे ही किया होगा। तब तो ( अधिक मासमें सर्वशुभकार्य त्यागनेका ) ज्योतिषशास्त्रका नामसें चारों महाशयोंका लिखके ठहराना उचित ठीक होसके परन्तु जो अधिक मासमें निन्दा ईर्षादि अशुभकार्य त्यागके देवगुरुभक्ति वगैरह शुभकार्य चारों महाशयोंने करनेका उपदेश दिया होगा भक्तजनोंसे करानेका नियम भी दिलाया होगा और अपने भी उपरके अशुभ कार्योंका त्यागकरके शुभकार्योंको किये होवेंगे तबतो अधिक मासमें ज्योतिष शास्त्रका नाम लेकरके सर्व शुभकार्य त्यागनेका ठहराना चारों महाशयोंका भोले जीवोंको भ्रममें गेरके मिथ्यात्व बढ़ानेके सिवाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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