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________________ [१] तो दूसरे श्रावण शुदीमें और भाद्रव बड़े तो प्रथम भाद्रव शुदीमें आषाढ़ मासे ५० में दिनही पर्युषणा करना परन्तु ८० अशीमें दिन नही करना ऐसा लिखके पृष्ठ १५५ में अपनेही गच्छ के श्रीजिनपति सूरिजी रचित समाचारीका प्रमाण दिया है ) इन अक्षरोंको न्यायाम्भोनिधिजी लिखते हैं और उपरोक्त श्री खरतरगच्छ के पूर्वाचारोंके ग्रन्थोंका दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने सम्बन्धी पाठोंको भी जानते हैं तथापि ( अधिक मास होवे तो श्रावण मास में पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छवाले भी नही कह गये हैं ) इतना प्रत्यक्ष मिथ्या लिखके अपना महाव्रत भङ्गके सिवाय और क्या लाभ उठाया होगा सो पाठकवर्ग विचार लेना और तीसरा ( देखो सन्देहविषौषधी ग्रन्थ में श्री भाद्रव मासहीके विशेषण करके कहा है परन्तु ऐसा नही कहा है कि अधिक मास होवे तो श्रावण मास पर्युषणा करना ऐसा पर्युषण पर्व के साथ विशेषण नही दिया है) यह लिखा - है सो भी मायावृत्तिसें प्रत्यक्ष मिथ्या लिखा है क्योंकि श्री जिनप्रभरिजीने श्रीसन्देहविषौषधी वृत्तिमें खुलासा पूर्वक दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमे पर्युषणा करनी कही है जिसका पाठ भव्यजीवोंको निःसन्देह होनेके लिये इस जगह लिख दिखाता हुं श्रीसन्देहविषौषधी वृत्तिके पृष्ठ और ३१ का तथाच तत्पाठः ३० साम्प्रतं पर्युषणा समाचारी विवक्षरादौ पर्युषणा कदा विधेयेति श्रीमहावीरस्तद्गणधर शिष्यादीन् दृष्टान्तेनाह तेणं काले नित्यादि । वासाणंति । आषाढ़चतुर्मासकदिनादारभ्य सविंशतिरात्रे मासे व्यतिक्रान्ते भगवान् पज्जोसवे ܬ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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