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________________ [ १८७ ] भाष्य, चूर्णि, वृत्यादि अनेक शास्त्रों में मासवद्धि होनेसे प्रावणमासमें पर्युषणा करना लिखा है इसका विशेष निर्णय लीनों महाशयोंकी समीक्षामें शास्त्रोंके प्रमाण सहित न्याययुक्तिके साथ अच्छी तरह से इन्ही पुस्तकके पृष्ठ २०७ सें पृष्ठ ११७ तक छप गया है उसीकों पढ़नेसे सर्व निर्णय हो जावेगा और दूसरा ( अधिक मास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छ वाले भी नही कहगये है ) यह लिखा है सोभी प्रत्यक्ष मिथ्या है क्योकि श्रीखरतरगच्छके अनेक पूर्वाचार्योंने अनेक ग्रन्थो में दो श्रावण होनेसे दूसरा श्रावणमें पर्युषणा करनी कही है सोही देखो श्रीजिनपतिसूरिजी कृत श्रीसङ्घपट्टक वृहद्वृत्तिमें १। तथा श्रीसमाचारी ग्रन्थ में । २। श्रीजिनप्रा सूरिजी कृत श्रीसन्देहविषौषधी वृत्तिमें । ३ । तथा श्रीविधिप्रपा ग्रन्थमें । ४ । श्रीउपाध्यायजी श्रीसमयसुन्दरजीकृत श्रीकल्पकल्पलता वृत्तिमें । ५। तथा श्रीसमाचारी शतकमें। ६ । और श्रीलक्ष्मीबल्लभगणिजी कृत श्रीकल्पद्रुमकलिका रत्तिमें।७। और श्रीतप गच्छ तथा श्रीखरतरगच्छसम्बन्धी (तपा खरतर प्रश्नोत्तर)नाम ग्रन्थ है उसीमें। ८। और श्रीपर्युषणा सम्बन्धी चर्चापत्रमें । । इत्यादि अनेक जगह खुलासापूर्वक दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करनेका श्रीखरतरगच्छके पूर्वाचार्योनें कहा है तैसे ही श्रीतपगच्छके पूर्वाचाय्याने भी अनेक ग्रन्थों में दूसरे श्रावणमें ही पर्युषणा करना कहा है और खास न्यायाम्भोनिधिजी भी शुद्धसमाचारी पुस्तक सम्बन्धी अपनी जैन सिद्धान्त समाचारी की पुस्तकके पृष्ट ८७ को पाक २२ वी में पृष्ठ ८८ प्रथम पंक्ति तक लिखते हैं कि ( श्रावण मास बढ़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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