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________________ [ १७८ ] आषाढ़ चौमासीसें प्रथम पचासदिन जानेसें और पिछाड़ी ७० दिन रहनेसें एवं चार मासके १२० दिनका वर्षाकाल सम्बन्धी श्रीसमवायाङ्गजी का पाठ है सो तो अल्पबुद्धिवाला भी समझ सकता है तो फिर न्यायांसोनिधिजी न्यायके और बुद्धिके समुद्र इतने विद्वान् होते भी दो श्रावणादि होनेसे पांचमास के १५० दिन का वर्षाकाल में पर्युषणाके पिछाड़ी ७० दिन रखने का आग्रह करते कुछ भी विचार नही किया बड़ीही शरमकी बातहै और दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें ८० दिने पर्युषणा करके पिछाड़ी के ७० दिन रखने का न्यायांभोनिधिजी चाहते होवे तोभी अनेक शास्त्रोंके विरुद्ध है क्योंकि व्यवहारिक गिनतीसें पचास दिने अवश्य ही निश्चय करके पर्युषणा करनी कही है, और दिनोंकी गिनती में अधिकमास छुट नही सकता है इस लिये ८० दिने पर्युषणा करके पिछाड़ी ७० दिन रखेंगे तो भी शास्त्रविरुद्ध है और अधिक मासको गिनती में छोड़ कर पर्युषणा के पिछाड़ी 90 दिन रख्खेंगे तो भी अनेक शास्त्रोंके विरुद्ध है क्योंकि अधिक मासको अनेक शास्त्रों में और खास श्रीसमवायांगजी सूत्र में प्रमाण किया है इस लिये अधिकमास को गिनतीमें निषेध करना भी न्यायांभोनिधिजीका नहीं बन सकता है और चारमासके सम्बन्धी पाठको पांचमासके सम्बन्धमें न्यायांभोनिधीजी को सूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थ में लिखना भी उचित नही है इस लिये श्रीसमवायाङ्गजी सूत्र का पाठ पर अपनी कल्पनासें न्यायांओनिधिजी अथवा उन्होंके परिवारवाले और उन्होंके पक्षधारी वर्त्तमानिक श्रीतपगच्छके महाशय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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