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________________ [ १७ ] अवश्य होजायगें] यह अक्षर पृष्ठ ८९ की पंक्ति ३।४ में लिखें हैं अब पाठकवर्ग विचार करो कि अधिकमास होनेसें तेरह मास अवश्य करके न्यायांभोनिधिजीने मान्य करलिये जब अधिकमास गिनतीमें मंजूर हो चुका तब दो श्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन न्यायांभोनिधिजीके वाक्यसें भी सिद्ध होगये तो फिर पचास दिने पर्युषणा करनेका पाठ दिखाना और ८० दिने अपनी कल्पनासें पर्युषणा करना यह कोई बुद्धिवाले विवेकी श्रीजिनाज्ञाके आराधक पुरुष का काम नही है सो पाठकवर्ग भी विचार लेना;___ और भी दूसरा सुनो (श्रावणमास बढ़नेसे दूसरे श्रावण में और भाद्रव बढ़नेसें प्रथम भादव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने ८० ( अशी ) दिनकी प्राप्तिके भयसै अङ्गीकार किया ) इन अक्षरों का तात्पर्य ऐसे निकलता है कि शुद्ध समाचारीकारकों तो ८० दिने पर्युषणा करनेसे शास्त्रविरुद्धका भय लगा तब पचास दिने पर्युषणा करनेका अङ्गीकार किया परन्तु न्यायाम्भोनिधिजीको ८० दिने पर्युषणा करने में शास्त्र विरुद्धका भय नही लगता है इस लिये दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें और दो भाद्रपद होनेसे दूसरे भाद्रपदमें ८० दिने पर्युषणा शास्त्र विरुद्धताको न गिनके करते हैं यह बात सिद्ध होगह इस बातको पाठकवर्ग भी विशेष करके विचार लो; और श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठको दिखाकर दो श्रावणादि होते भी 90 दिन पर्युषणाके पिछाड़ी रखने का जो न्यायांभोनिधिजी कहते है सो भी सूत्रकार तथा वृत्तिकार महाराजके और युक्ति के भी विरुद्ध है क्योंकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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