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________________ [ १५० ] तथा दूसरे श्रीजयविजयजीने श्रीकल्पदीपिका वत्तिमें और तीसरे श्रीविनयविजयजीने श्रीसुखबोधिकावृत्ति में इन तीनों महाशयोंने श्रीकल्पसूत्रका मूलपाठके विरुद्धार्थ में उत्सूत्रभाषणरूप अपने हठवादके कदाग्रहको जमानेके लिये जो जो बाते लिखी है उन बातोंको श्रीतपगच्छके वर्तमानिक मुनिजनादि गांम गांममें हर वर्ष पर्युषणामें भोले जीवोंको सुनाते हैं जिससे आत्मसाधनका धर्मके बदले जिनाजा विरुद्ध मिथ्यात्व की श्रद्धा गिरके श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उल्लङ्घन करके वड़ी आशातना करते हुए दुलभ बोधिका साधन करनेके कारणमें पड़ते हैं इस विषयके सम्बन्धी प्रथम श्रीधर्मसागरजीने वही धूर्ताई करके श्रीतपगच्छमें पर्युषणा संबन्धी अधिकमासको निषेध करने के लिये श्रीकल्पकिरणावली वत्तिमें प्रथमही मिथ्यात्वको निव लगाई है इस बातका खुलासा [ आठो ही महाशयोंके उत्सूत्र भाषणके लेखोंकी समीक्षा हुवे बाद ] अन्तमें विस्तारपूर्वक लिखुगा और इन तीनों महाशयोंने इस तरहसें मायावृत्तिका लेख लिखा है कि जिसमें भोले जीव तो फसे उसमें कोई आश्चर्य नही है परन्तु न्यायाम्भोनिधिजी श्रीआत्मारामजी जैसे प्रसिद्ध विद्वान् होते भी फस गये और उन्होंकी तरह श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातनाका कारणरूप और पूर्वापर विरोधि अधिक मासका निषेध आपभी आगेवान होकर कराया है इसलिये अब इन्होंके लेखकी भी समीक्षा आगे करता हूं॥ इति तीनों महाशयों के नामकी संक्षिप्त समीक्षा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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