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________________ [ १४९ ] राजोंकी आशातना करने वाला और उन्हीं महाराजोंका वाक्यको न मानता हुवा उत्थापन करने वाला प्राणीको यावत् दुलभ बोधि मिथ्यात्वी अनन्त संसारी कहा है तैसे ही न्यायांभोनिधिजी श्रीआत्मारामजीने भी अज्ञान तिमिरभास्कर ग्रन्थके पृष्ठ ३२०में लिखा है-छठ दशम द्वादसे हिं, मासटुमासखमणे हिं। अकरन्तो गुरुवयणं, अनन्त संसारिओ भणिओ ॥१॥ तथा और भी पृष्ठ २९५ का लेख इसी ही पुस्तकके पृष्ठ 6 और ८०, में छपगया है इससे भी पाठकवर्ग विचार करो कि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचायौंको और अपने ही गच्छके पूर्वाचार्योंकी इन तीनों महाशयोंने अधिकमासको निषेध करने के लिये कितनी बड़ी आशातना करके कितने शास्त्रोंके पाठोंको उत्यापन किये है तो फिर इन तीनों महाशयोंमें अनन्त संसारका हेतु रूप मिथ्यात्वके सिवाय सम्यक्त्वका लेश मात्र भी कैसे सम्भव होगा क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंकी आशातना करने वाला तथा आज्ञा न मानने वाला और उलटा उन्ही महात्माओंके वचनोंका उत्यापन करने वालाको जैन शास्त्रोंके जानकार बुद्धिजन पुरुष सम्यक्त्वी नही समझ सकते हैं इसलिये अब पाठक वर्ग पक्षपातका दृष्टिरागको छोड़कर और श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञानुसार सत्य बातके ग्रहण करनेकी इच्छा रखकर उपरकी वार्ताको अच्छी तरहसें पढ़के सत्यासत्यका निर्णय करके असत्यको छोड़ो और सत्यको ग्रहण करो यही मोक्षाभिलाषि भवनिरु पुरुषोंसे मेरा कहना है और प्रथम श्रीधर्मसगरजीने श्रीकल्पकिरणावलीवृत्तिमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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