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________________ [ १४५ ] करके समय खोया है और आपका तथा आपके लेखको सत्य माननेवालोंका संसार वृद्धिका कारणभी खुबं किया है सो इन सब बातोंका जवाब शास्त्रोंके प्रमाणसे शास्त्रकार महाराज के अभिप्रायः समेत तथा न्यायपूर्वक युक्ति सहित अच्छी तरहसें खुलासाके साथ आगे चौथे महाशय श्रीन्यायांभोनिधिजी और सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजीके नाम में लिखने में आवेगा, परन्तु इस जगह निष्पक्षपाती सत्यग्राही श्रीजिनेश्वर भगवन् की आज्ञाके आराधक सज्जन पुरुषोंसें थोड़ीसी वार्ता दिखाकर पीछे तीनों महाशयोंकी समीक्षाको पूर्ण करूंगा सो वार्ता अब सुनो ; तीनों महाशयोंने श्रीकल्पसूत्रके मूलपाठकी [अंतरा वियसे कप्पइ नोसे कप्पइ तं रयणिं उवायणा वित्तएति] इस पदकी व्याख्या [अर्वागपि कल्पे परं न कल्पेतां रात्रिं (रजनीं) भाद्रपदशुक्लपञ्चमी उवायणा वित्तएति अतिक्रमीतु इत्यादि व्याख्या खुलासा पूर्वक किंवी हैं जिसमें। प्रथम । आषाढ़चौमासीसें पचास दिनके अंदर में कारणयोगे पर्युषणा करना कल्पे परन्तु पचासवें दिनकी भाद्रपदशुक्ल पञ्चमीकी रात्रिको उल्लङ्घन करना नही कल्पे। तथा दूसरी। पाँच पाँच दिनको वृद्धि करते दशवे पञ्चकमें पचास दिने पर्युषणा जैन पञ्चाङ्गानुसार मासवृद्धिके अभावसें लिखी । और तीसरी। जैन पञ्चाङ्गानुसार एक युगमें पौष और आषाढ़ दो मासकी वृद्धि होनेसे वीशदिने पर्युषणा लिखी। और चौथी। अबी वर्तमानकालमें जैन पञ्चाङ्गके अभावसे लौकिक. पञ्चाङ्गमें हरेक मासोंकी वृद्धि होती है इसलिये आषाढ़ १८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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