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________________ [ १४४ ] संवत्सरमें वीश दिने पर्युषणा होतीथी उसीको गृहस्थी लोगोंके करने मात्रही ठहरानेके लिये श्रीनिशीथ चूर्णिका दशवा उद्देशाके पर्युषणा विषयका आगे पीछेका संबंध को छोड़कर चूर्णिकार महाराजके विरुद्धार्थ में सिर्फ दो पद, लिखके स्था परिश्रम करके वड़ी भूल किवी हैं क्योंकि जो आषाढ़पूर्णिमाको पर्युषणा कही हैं सो गृहस्थी लोगके न जानी हुई, अप्रसिद्ध तथा अनिश्चयसे होती हैं उसमें लोचादिकत्य करनेका कोई नियम नहीं हैं परन्तु वीशे, और पचासे, गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई प्रसिद्ध निश्चय पर्युषणा होती है उसीमें लोचादिकृत्योंका नियम है इस लिये वीश दिनकी भी पर्युषणा वार्षिक कृत्योंसे होती थी इसका विशेष विस्तार उपरमें पहिले अनेक जगह छपगया है और श्रीनिशीथचूर्णिके १० वे उद्देशेका पर्युषणा संबंधी संपूर्ण पाठ भी उपरमे पृष्ठ १५ से C तक और भावार्य १०० से १०४ तक छपगया है और आगे पृष्ठ १०६ से यावत् ११७ तक उसी बातके लिये अनेक शास्त्रोंके प्रमाणसे और युक्तिपूर्वक विस्तारसे छपगया है सो पढ़नेसे सर्व निर्णय होजावेगा और आगे लौकिकमें दीवाली, अक्षयतृतीयादि पर्व वगैरह तथा अन्यभी सर्व शुभकार्य अधिक मासको नपुंशक कहके ज्योतिषशास्त्र में वर्जन किये हैं और अधिक मास में वनस्पति प्रफुल्लित नही होती हैं, इत्यादि बाते जो जो तीनों महाशयोंने लिखी हैं सो निःकेवल शास्त्रकारोंके अभिप्रायःकों जाने बिना विरुद्धार्थ में उत्सूत्र भाषणरूप भोले जीवोंको अपने फन्दमें फसानेके लिये लिखके मिथ्यात्वके कारणमें वृथा परिश्रम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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