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________________ [ १२४ ] दिन रहते हैं) इस अभिप्राय के व्यवहारको जड़मूलसे ही उड़ा करके अभिवर्द्धितमें भी पचास दिने पर्युषणा और पीछाडी १० दिन रखनेका शास्त्रकारों के विरुद्धार्थमें वृथा आग्रहसे हठ करते हैं क्योंकि श्रीगणधर महाराजने श्रीसमवायांगजी मूलसूत्र में और श्रीअभयदेवसूरिजीनें वृत्तिमें प्रथम पचास दिन जानेसे और पीछाडी 90 दिन रहनेसे जो पर्युषणा करनी कही है सो चन्द्रसंवत्सर में नतु अभिवर्द्धितमें तथापि तीनों महाशय श्रीसमवायांगजीका पाठको अभिवर्द्धत स्थापन करते हैं सो निःकेवल श्रीगणधर महाराजके और वृत्तिकार महाराजके अभिप्रायके विरु द्वार्थमें उत्सूत्र भाषण करते हैं इसलिये मास वृद्धि होते भी पीछाडी 90 दिन रखनेका पाठको दिखाकर संशय रूप भ्रमजाल में भोले जीवोंको गेरना सर्वथा शास्त्रकारोंके विरुद्वार्थमें है इसलिये मास वृद्धि होते भी बीस दिने पर्युषणा करने से पर्युषणा के पीछाडी एकसो दिन प्राचीन कालमें भी रहते थे उसमें कोई दूषण नहीं - और अब जैन पंचाङ्ग के अभाव से वर्तमानिक लौकिक पंचाङ्गमें श्रावणादि हरेक मासों की वृद्धि होनेसे शास्त्रानुसार तथा पूर्वाचार्यकी आज्ञा मुजब पचास दिने दूजा श्रावण शुदीमें पर्युषणा श्रीखरतरगच्छादि वालोंके करनेमें आती है जिन्होंको पर्युषणाके पीछाडी कार्त्तिक तक एकसो दिन स्वाभावसेही रहते हैं सो शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक * क्योंकि दो श्रावणादि होनें से पाँच मासके १५० दिनका अभिवर्द्धित चौमासा होता है जिसमें पचास दिने पर्युषणा होवे तब पीछाडीके एकसो दिन नियमित्त रीतिसे रहते हैं यह बात जगत्प्रसिद्ध है इसमें कोई भी दूषण नहीं है इसलिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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