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________________ [ ९९= ] महाराज पर्युषणा करने से कार्त्तिक चैामासी तक पीछाड़ीके १०० दिन रहते हैं तो भी कोई दूषण नहीं कहा है परन्तु मासमृद्धि की गिनती निषेध करनेसे श्रीअनन्त नीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उल्लङ्घनरूप महान् मिथ्यात्वके दूषतकी अवश्यही प्राप्ति होती है तथापि इन तीनों महाशयोंने उपरके दूषणका जरा भी विवार न किया और श्रीगणधर श्रीसुधर्मस्वानिज कृत श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठका उत्थापनका भी बिलकुल विवार न करते सूत्रकार महाराज के विरुद्धार्थमें पाठ लिखके भोले जीत्रोंको सत्य बात परसे श्रद्धा उतारेके जिनाज्ञा विरुद्ध मिथ्यात्वरूप झगड़े की डोर हाथ में देकर कदाग्रहमें गेरदिये हैं और अधिक मासको गिनती में लेने वालेको उलटा मिथ्या दूषण दिखाते हैं और अधिक मासको गिनती नहीं करते भी आप निदूषण बनके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठसे सत्यवादी तथा आज्ञा के आराधक बनते हैं जिसका पाठ इसी पुस्तकमें पृष्ठ ६९ 90 में और भावार्थ: पृष्ठ १२ । १३ में छपगया है इसलिये इस जगह पुनः पाठ न लिखते थोड़ासा मतलब लिखके पीछे उसमें जो जो शास्त्र विरुद्ध है सो दिखावेंगें — तीनों महाशयोंका खास अभिप्रायः यह है कि अधिक मातको गिनती में करनेवालोंको दो आश्विन मास होनेसे दूजा आश्विन में चमाती कृत्य करना पड़ेगा और दूजा आश्विन में चौमासी कृत्य न करते कार्त्तिकमें करेगे तो पर्युषणाके पीछाड़ी १०० दिन हो जावेगे तो श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके वचनको बाधा आवेगा क्योंकि समणे भगवं महावीरे वासाणं स्वीस इराइ मासे विकते सत्तरिए हिंराइदिएहिं . इत्यादि श्रीसम - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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