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________________ [ ८४ ] खण्डनरूप सर्वथा जैन शास्त्रोंसे और युक्तिसे भी प्रतिकुल हैं क्योंकि प्रथमतो अधिक मासको गिनती में लेनेसेही अभि वर्षित नाम संवत्सर बनता हैं सो अभिवर्द्धित संवत्सर तोनो महाशयोंने उपरमें लिखा हैं जो अभिवर्धित संवत्सर का नाम श्रीतीर्थङ्करादि महाराजांकी आज्ञानुसार कायम तीनो महाशय रक्खेंगें तो अधिकमास कालबूला है सो दिनोंकी गिनती में नही आता है ऐसे मतलबका लिखना तीनो महाशयोंका सर्वथा मिथ्या हो जायगा -- और अधिकमास कालचूला है सो दिनोंकी गिनती में नही आता है ऐसे मतलबको कायम रखेंगे तो जो अधिकमास की गिनती से अभिवर्द्धित नाम संवत्सर होता है सो नही बनेगा यह दोनो बात पूर्वापर विरोधी होनेसे नही बनेगे इस लिये अबजो ये तीनो महाशय अधिकमासको दिनोकी गिनती में नही लेवेंगें तब तो श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि तथा श्रीतपगच्छके नायक पूर्वाचार्येने अधिक मासको दिनो की गिनती में लिया है जिन महाराजोंके विरुद्ध उत्सूत्र भाषणरूप तीनो महाशयोंका वचन होगया सो आत्मार्थियोको सर्वथा त्यागने योग्य हैं इस लिये तीनो महाशयोंको जिनाज्ञा विरुद्ध परूपणाका भय होता तो अधिकमासको गिनती निषेध किवो जिसका निथ्या दुष्कत्यादिसे अपनी आत्मा को उत्सूत्र भाषणके कृत्योंसे बचानी थी सो तो वर्तमान काल में रहे नही है परलोक गयेको अनेक वर्ष होगये हैं परन्तु वर्तमान काल में श्रीतपगच्छके अनेक साधुजी विद्वान् नाम धराते हैं और उन्ही तीनो महाशयों के लिखे वाक्यको सत्य मानते है तथा हर वर्षे उसीको पर्युषणा में वांचते है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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