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________________ [ ३१ ] एक सोने एकवीसभाग उपर एटेलुं अभिवहित मासन प्रमाण जागव एरीतेए पांचमासनी जेन निःप्पति एटले प्राप्तिथाय छे तेसमयके सिद्धान्त थकी जांणवी इति गाथा चतुष्टयार्थ ॥ ४० ॥ अवतरणः-वरिसाणपंचशेयत्ति एटले वर्षना पांचभे हुनु एक होने बेतालीसमु द्वार कहे छे ।। मूलः-संवछराउ पंवउ “चंदे चंदे भिवढिए चेव । चंदे भिवड्ढएतह बासहिनासे हि जुगमाणं ॥१०॥ अर्थः-वंद्रादिक संवत्सर पांचकह्याछे तेमा पूर्वोक्त चंद्रमासे जे नीपन्योते चंद्र. संवत्तर जाणवो। तेनु प्रमाण त्रणसे चोपनदिवस अने एक दिव तना बासठभाग करिये तेवा बारभाग उपर जाणवा तेमज बीजा चंद्र संवत्सरनु पण मानजाणवं । हवे चंद्रसवत्तर थी एक अधिकमास थाय ऐटले तेने अभिवति संवत्सरजांणवो तेनु प्रमाण त्रण व्यासीदिवत अने एक दिवतना बासठभाग करी तेमांना चुमालीसभाग एवो एक अभिवति संवत्सर जाणवो एकत्रीश अहोरात्र अने एकदिवतना एकहो चोवीसभाग करिये तेमाहिला एकप्तो एकवीसभाग उपर ए अभिवर्द्धित मासन मान जाणवं। हवे पूर्वोक्त माने अभिवहित संवत्तर बे अने चंद्रसंवत्सर त्रण एवा पांच संवत्तरे एक युगमान थाय छे ते बासठचंद्रमाप्त प्रमाणक छ । सारांश एकयुगमांत्रण चांद्रसंवत्सर ते चांद्रसंवत्सरना प्रत्येक बारमास मली छत्रीस चांद्रमास अने बे अभिवति संवत्सर तेमां एक अभिवद्धित संवत्सरना तेरे चांद्रमास ए प्रमाणे बीजा वना पण तेरे मलो एकंदर छवीसमास अने पूर्वोक्त चांद्रमास छत्रीस मलीने बासठ चांद्रमासे एक युगनुं मानथाय ॥ ॥ इति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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