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________________ ( - ) माबणमें पर्युषणा करनेवालोंको वृथा द्वेषबुद्धिसे आशाअङ्गका दूषण लगाना और दो श्रावण होते भी आषाढ़ चीनासीसे दो मास उपर बीस दिन याने ८० दिने ( प्रत्यक्ष पंचाड़ी विरुद्ध अपनी मति कल्पनासे) पर्यवणा करके भी आज्ञा के आराधक बनना सेा गच्छकदाग्रहि उत्सूत्र भाषण करनेवालोंके सिवाय और कौन होगा सो विवेकी सज्ज - मोंको विचार करना चाहिये । और दो श्रावण होतेभी भाद्रपद में तथा दो भाद्रपद होनेसे भी दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषणा करनेवाले महाशयों को हर वर्ष पर्युषणा में प्राय करके सब जगह पर बंचाता हुआ मूलमन्त्ररूप उपरोक्त सत्रपाठको विवेक बुद्धिसे विचार के असत्यको छोड़ कर सत्यको ग्रहण करना चाहिये । और अब ऊपर के सब पाठकी सब व्याख्याओंके सबपाठ बहोत विस्तार हो जाने के कारणसे नहीं लिखता हूं परंतु ( अन्तरा विपसे कप्पड़ नेासे कप्पड़ तं रयणि उवायणा वितए) इस अन्तके पाठकी थोड़ीमी व्याख्याओंके पाठ लिखके पाठक वर्गको विशेष निःसन्देह होनेके लिये लिख दिखलाता हूं । • २ श्रीखरतरगच्छ के श्रोसमय सुन्दरजी कृत श्री कल्पकल्पता वृत्तिके पृष्ठ १९९ से १९२ तकका तत्पाठः- अन्तरावियसेकप्पइ पज़्जोसवित्तए । अन्तरापि च अर्वापिकल्प पर्युषितुं, "मोसेकप्पर तं रयणि" परं न करूपते तां रजनीं भाद्रपद शुक्लपञ्चमीं, "वाइणावित्तएत्ति, अतिक्रमितुं । उषनिवासे इत्यागमिकोधातुः, इह पर्युषणाद्विधागृहिज्ञाता गृह्यज्ञाताच, तत्र गृहिणामज्ञातायां वर्षा योग्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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