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________________ [१५] करेमि भंते पीछे इरिया वहीकरने का खुलासा लिखा है, जिसपर भी चूर्णिके लिखे सत्य पाठको छुपा देना, और चूर्णिकारने रात्रिपौषध वालों के लिये ११ वा पौषधवत संबंधी इरियावही लिखी है, उसको चूर्णि कारके अभिप्राय विरुद्ध होकर ९ वे सामायिक व्रतमै भोले जीवोंको दिखलाना, खो मायावृत्तिरूपप्रपंच से प्रत्यक्षझूठ बोलकर शास्त्रवि रुद्ध प्ररूपणा करना संसारवृद्धिका कारण होनेसे आत्मार्थियोंको क दापि योग्य नहीं है. यहां पर लडकोंके खेल जैसी प्रपंचताकी बातें नहीं हैं, किंतु सर्वज्ञ शासनकी बातें हैं, इसलिये एकही ग्रंथ में, एकही वि. षय में, एकही पूर्वाचार्यको पूर्वापर विरोधी विसंवादी कथन करने वाले ठहराना, सो बडी अज्ञानता है. अथवा जान बुझकर पूर्वाचार्योंकी आशातनाका और शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणाका भय न रखकर इस लोककी पूजा मानताकेलिये अपना झूठा आग्रह स्थापन करनेकेलिये यही एसी शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा करते होंगे, सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने. हम इस बात में विशेष कुछभी नहीं कह सकते हैं । २३- इसी तरह से सामायिक में प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते कह मेका स्थापन करनेवाले न्यायरत्नजीआदिको पूर्वाचार्यको विसंवादोके झूठे दोषलगाने के हेतूभूत तथा अनेक शास्त्रोंके विरुद्धप्ररूपणा करनेरूप अनेक दोषोंके भागी होनापडता है, और पूर्वाचार्योंको झूठा दोष लगाने की आशातनासे तथा शास्त्रकारोंके अभिप्रायविरुद्ध प्ररू पणा करने से आपने व अपने पक्ष के आग्रहकरनेवाले बालजीवों केभी संसारवृद्धिका कारणरूप महान् अनर्थ होता है, यही सर्व बातें म्या यरत्नजीने ' खरतरगच्छ समीक्षा' में सामायिक में प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही करनेकी आवश्यक चूर्णि, बृहद्वृत्ति वगैरह शास्त्रामु सार सत्य बातको निषेध करनेके लिये और प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते स्थापन करनेके लिये महानिशीथ-वशवैकालिक सूत्रकी ठीकाकारवगैरह बहुतशास्त्रकारमहाराजों के अभिप्राय विरुद्ध होकर अधूरे२पाठोसे उलटा२संबंध लगाकर उत्सूत्रप्ररूपणासे बडा अमर्थ किया है, उसका नमूना रूप थोडासा सामायिक संबंधी पाठकगण को निसंदेह होनेकेलिये हमनें ऊपर में इतना लिखा है. मगर इस प्रकरणका विशेष खुलासा पूर्वक इसीही 'बृहत्पर्युषणा निर्णय ग्रंथके पृष्ठ ३०९ से ३२९तक अच्छी तरह से छप चुका है, वहांसे विशेष जान लेना और " आत्मभ्रमोच्छेदन भानुः" नामा ग्रंथ में भी विस्तारपूर्वक शास्त्रों के पाठसहित निर्णय हमारी तरफसे छप चुका है, इस लिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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