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________________ (७८) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीसामुद्रिक: भुजाओं से ( करतल ) हाथोंकी हथेली यदि कोमल निर्मल कमलके समान, तथा ऊंची हों तो अपने पतिके कामदेवको बढानेवाली होती है यह ब्रह्माके वचन मुनियोंने कड़े हैं ॥ ५१ ॥ स्वच्छ रेखाकुलं भद्रं नो भद्रं हीनरेखया ॥ अभद्रं रेखया हीनं वैधव्यं चातिरेखया ॥५२॥ यदि हाथ की हथेली निर्मल रेखाओंसे भरी हों तो मङ्गल देनेवाली होती है यदि रेखा छोटी हों तो अमंगली है यदि रेखा न हों तो अमंगली होवे और अतिरेखा हों तो वैधव्य पावै ॥ ५२ ॥ करपृष्ठलक्षणम् । शिरालं कुरते निःस्वं नारीकरतलं यदि ॥ समुन्नतं च विशिरं करपृष्ठं सुशोभनम् ॥ ५३ ॥ हाथ अति शिरा (नसियों से भरा ) हो तो स्त्री निर्धन होवे और हाथका पिछवाडा ऊंचा तथा नसियोंसे रहित हो तो शुभ होता है५३ रोमाकुलं गभीरं च निर्मासं पतिजीवहत् । सुभ्रुवः करपृष्ठस्य लक्षणं गदितं बुधैः ॥ ५४ ॥ यदि हाथ की पीठ रोमों से भरी, गहरी और मांसरहित हो तो पति के प्राणों को हरे इतने स्त्रियोंके करपृष्ठके लक्षण पंडितोंने कहे हैं ॥५४॥ कररेखा | गभीरा रक्ताभा भवति मृदुला वा स्फुटतरा करे वामे रेखा जनयति मृगाक्ष्या बहु शुभम् ॥ यदा वृत्ताकारा पतिरतिसुखं विंदति परं विसारं सौभाग्यं बलमपि सुतं स्वस्तिकमपि ॥ ५५ ॥ यदि स्त्रीके बाँये हाथमें गहरी, लाल रंगकी, कोमल, देखने में स्पष्टतर रेखा हों तो अतिशुभ होती हैं और गोलाकार हों तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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