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________________ ( ३६ ) भावकुतूहलम् - [ राजयोगः यदि जन्मधारियोंके जन्मसमय में नवमेश दशमस्थान में और दशमेश नवमस्थान में हों, वा दोनों बलवान हो तो समुद्रपर्यंत कीर्ति फैलानेवाला राजा होवे तथा उसके शत्रुविजयार्थ गमनमें धनुषकी (ज्या ) कमानके टंकारशब्दोंसे शत्रुसमूह आश्चर्ययुक्त होकर भय के मार्गको प्राप्त होता है ॥ १९ ॥ प्रतापाधिकयोगः । ! भवेदङ्गाधीशो जननसमये पुण्यभवने तथा कर्मस्वामी भवति च विलग्ने जनिमताम् ॥ तथा गर्जन्तावलकरभवाजिव्रजपदैः समाक्रान्ता पृथ्वी ब्रजति गमने मोहपदवीम् ॥२०॥ जिसके जन्मसमय में लग्नेश नवमस्थान में एवं दशमेश लग्रमें हो तो वह राजा होकर गर्जन करनेवाले हाथी घोडे ऊँट आदिकों के समूहसहित जब गमन करे तो सेना के बोझोंसे दबी हुई पृथ्वी मोह पद ( घबराहट) को प्राप्त होजावै ॥ २० ॥ सुखैश्वर्यादियुक्तयोगः । यदा राज्यस्वामी नवमसुतकेन्द्रेऽर्थ भवने बलाक्रान्तो यस्य प्रभवति स वीरो नरवरः ॥ सदा काव्यालापी नवमणिकलापी बहुबली तुरङ्गालीदन्तावलकलभगन्ता धनपतिः ॥ २१ ॥ यदि जन्मसमयमें दशमभावका स्वामी त्रिकोण (९१५) वा केन्द्र ( १ । ४ । ७ । १० ) यद्वा धन (२) स्थानमें बलवान हो तो वह सर्वदा काव्य करने वा कहनेवाला होवे एवं बहुत बलवान् और अनेक घोडाओंके पांति और हाथियोंके मनोहर जवान पट्टाओंके सवारीमें गमन करनेवाला धनवान राजा होवे ॥ २१ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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