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________________ सप्तमः ७]. भाषाटीकासमेतम् । (३३) धनुषोंके टंकार शब्दोंसे भयभीत होकर दिशारूपी (अबल) श्री क्षणमात्रमें (भ्रांत ) घबराहटयुक्त हो जाती हैं ॥ ११ ॥ सिंहासनयोगः । कन्यामीनवृषालिभे यदि खगाः सिंहासनः कीर्वितः किंवा चापनृयुग्मकुंभहरिभे खेटे हि सिंहासनः ॥ यः सिंहासनयोगजो हि मनुजो भूपाधिराजो बली गर्जत्कुञ्जरवाजिराजिमुकुटारूढो घरामण्डले ॥ १२ ॥ यदि ६ । १२ । २ । ८ राशियों में सभी ग्रह हों तो सिंहासनयोग होता है, यद्वा ९| ३ |११/५ राशियों में हो तौभी यही योग होता है जिस मनुष्यका जन्म सिंहासनयोगमें हो वह पृथ्वी में गर्जन करनेवाले हाथी घोडों की पंक्तिके ( मुकुट ) श्रेष्ठों पर बैठनेवाला राजाओंकाभी राजा होवे ॥ १२ ॥ चतुश्चक्रयोगः । अजे सिंहे कन्याकलशमिथुनान्त्यालितुरगे समाजः खेटानामिह भवति जन्मन्यपि नरः ॥ चतुश्चक्रे योगे सकलसुखभोगेन मिलितो महीपानामाली मुकुटमणिपाली विजयते ॥ १३ ॥ जिस मनुष्य के जन्ममें १२५ / ६ /११/३/१२/८/ ७ राशियों में सभी ग्रह हों तो इस योगका नाम चतुश्वक है इसमें जिसका जन्म हो वह समस्त सुखभोगोंसे युक्त होकर राजाओंके मुकुटमणियोंकी पंक्तिको जीतकर स्वयं अधिराज होता है ॥ १३ ॥ एकावलीयोगः । ! एकैकेन खगेन जन्मसमये सैकावली कीर्तिता मुक्ताळीव समस्तभूपमुकुटालङ्कारचूडामणिः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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