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________________ (३२) ...भावकुतूहलम्- [राजयोगः। सम्बन्धो दशमाधिपस्य नवमाधीशेनयेषां जनुः काले पंचमभावपेन च बलोपेतस्य तुल्येन चेत् ॥ प्रस्थाने सति लीलया तनुभृतां वश्यारिविश्वंभरा 'गर्जडोटकमत्तवारणघटाक्रांता समंताद्भवेत् ॥१०॥ ग्रहोंके सम्बन्ध चार प्रकारके होते हैं-परस्पर दृष्टि होने में दृष्टिसम्बन्ध(१)एकके राशिमें दूसरा, दूसरेमें पहिला, अन्योन्याश्रयसंबंध (२), दोनों भावोंके स्वामी अपनी अपनी राशियोंमें स्थानसंबध (३), कारकसंबंधी (४), जिनके जन्म समयमें नवमेश दशमेशका किसी प्रकार संबंध हो अथवा पंचमेशके साथ उनका संबंध हो परन्तु संबंधकारकग्रह बलवान हों तो संबंध भी (तुल्य ) बलवान् एवं अधिकारीहीके साथ करें तो उनके युद्धार्थ प्रस्थानमें वा अन्य सवारी निकलनेमें पृथ्वी गरजते हुये घोडोंकी, मतवाले हाथियोंकी घटओंसे चारोंओरसे आक्रांत होवे तथा लीलासे शवकी पृथ्वी (राज्य) विनहीं युद्ध किये वशमें हो जावै ॥ १० ॥ अत्युत्कृष्टराजयोगः। राज्यशो यदि देवतालयपदे पारावतांशे तपःस्थानेशो धनगोपि गोपुरलवे लाभादिपोजन्मिनाम् । चंचत्तुंगतुरङ्गकुंजरघटाघटाधनुयारवै वित्रस्तागमनोत्सवे दिगबला भ्रांतिं भजतिक्षणात् ॥ यदि मनुष्योंके जन्मसमयमें दशमभावेश नवमस्थानमें पारावतांशकमें स्थित होवे, नवमेश द्वितीयस्थानमें होवे, तथा लाभेश गोपुरांशकमें हो तो उनके (प्रयाणोत्सव ) सफरकी तैयारीमें चपल तथा उच्च घोडे और उन्मत्त हाथियोंकी घंटाओंके शब्दोंसे एवं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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