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________________ द्वितीयः २] भाषाटाकासमतम् (११) अष्टममें पाप ग्रह हों तो भी मनुष्यके बांये ( बाहु ) भुजापर चिह्न होवें । यह योग मुनि श्रेष्ठोंने कहा है ॥ ४॥ लाभारिसहजे भौमे व्यये वा शुक्रसंयुते ।। वामपार्श्वे गत चिह्न विज्ञेयं व्रण बुधैः ॥५॥ लाभ (११) अरि (६) सहज (३) अथवा व्यय ( १२)वें स्थानमें मंगल शुक्रसहित हो तो बांये बगलकी ओर (व्रण) खोटका चिह्न होवे ॥५॥ लग्ने क्षितिसुते मन्दे शुक्रदृष्टे त्रिकोणभे ॥ 'लिङ्गे गुदसमीपे वा तिलकं संदिशेद्बुधः॥६॥ लग्नमें मंगल तथा शनि ५ १ ९ स्थानमें हों परन्तु इसपर शुककी दृष्टिभी हो तो (गुदा) मलद्वारके समीप अथवा लिंगस्थानमें तिलका चिह्न होवे ॥६॥ सुतालये भाग्यनिकेतने वा कविर्यदा चाष्टमगौ ज्ञजीवौ ॥शनौ चतुर्थे तनुभावगे वा तदा सचिह्न जठरं नरस्य ॥ ७॥ शुक्र पञ्चम वा नवम हो, अष्टमस्थानमें बुध बृहस्पति और लग्नमें वाचतुर्थस्थानम शनि हो तो मनुष्यके (उदर ) पेटपर चिह्न होवे॥७ धने कवावष्टमलग्नभे वा दिवाकरे मन्दकुजौ तृतीये॥ कटिप्रदेशे प्रवदन्नराणां चित्रं विशेषादिह जातकज्ञः॥८ धन (२) स्थानमें शुक्र, तीसरे शनि मंगल हों अथवा अष्टम भावमें वा लममें सूर्य और तीसरे शनि मंगल हों तो जातकशास्त्र जाननेवाला मनुष्योंको कमरमें चिह्न कहै ॥८॥ पातालस्थौ राहुशुक्रौ लग्ने मन्दः कुजोपि वा ॥ पादमूलेऽथवा पादे वाम चिह्न विनिर्दिशेत् ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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