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________________ (१०) भावकुतूहलम् [ लयचिह्वाध्यायः___ अब यहाँसे जन्मलग्न निश्चय करने के लिये चिह्न कहे जाते हैं । जिसके जन्मलग्रमें मंगल तथा सप्तम बृहस्पति अथवा शुक्र हों तो उसके शिरमें चोट लगनेसे यदा व्रणादिसे (दाग ) खोट होवे, यह योग महात्मा यवनका कह है ॥ १॥ : भवति लग्नगते क्षितिनन्दने भृगुसुतेऽपि विधाविह जन्मिनाम्॥ शिरसि चिह्नमुदाहृतमादिभिमुनिवर्द्विरसाब्दसमासतः॥२॥ मंगल लग्नमें शक चंद्रमा सहित जिस मनुष्यका हो उसके शिरमें दूसरे अथवा छठे वर्षमें चिह्न होवे यह पूर्व मुनियोंने कहा रण रखना चाहिये कि, मंगल बली हो तो (व्रण) दाग और शुक्र चंद्रमा बली हों तो तिल (मशक ) लाखन आदि चिह्न होते हैं ॥२॥ } भार्गव जनुरङ्गस्थ चाष्टमे सिंहिकासुत ॥ .मस्तके वामकर्णे वा चिह्नदर्शनमादिशेत् ॥ ३॥ जन्मलग्नमें शुक्र तथा अष्टम स्थानमें राहु हो तो माथेमें अथवा बांये कानमें कुछ प्रकार चिह्न होवे ॥३॥ , मदनसदनमध्ये सिंहिकानन्दने वा सुरपतिगुरुणा चेदङ्गराशी युते नुः ॥ । प्रकथितमिह चिह्न चाष्टमे पापखेटे कविरपि गुरुरङ्गे वामबाही मुनीन्द्रैः ॥ ४॥ सप्तम भाव में राहु लग्नमें बृहस्पति हो अथवा लग्नमें बृहस्पति राहु युक्त हों अष्टमभावमें पापग्रह हों अथवा शुक बृहस्पति लपमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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