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________________ (१२२) भावकुतूहलम्। [ग्रहावस्थाफलम् कुतूहली सकौतुके महाधनी जनः सदा निजान्वयाब्जभास्करः कृपाकलाधरः सुखी ॥ निलिपराजपूजिते सुतेन भूनयेन वा । युतो महाबली धराधिपेन्द्रसद्मपण्डितः॥ ११ ॥ बृहस्पति कौतुकावस्थामें हो तो मनुष्य खेल तमासा करनेवाला होवे यदि पापराशिवाला होवे, सर्वदा बडे धनसे युक्त रहे, अपने वंशरूपी कमलके विकाशनमें सूर्य सदृश होवे, कृपाकला (दया) को धारण करनेवाला होवे, सर्वदा सुखी रहे, नम्र पुत्र, भूमि और नीतिसे युक्त होवे बडा बलवान शरीर होवे, राजद्वारका पण्डित होवे ॥११॥ गुरौ निद्रागते यस्य मूर्खता सर्वकर्मणि ॥ दरिद्रतापरिक्रान्तं भवनं पुण्यवर्जितम् ॥१२॥ जिसका बृहस्पति निद्रावस्थामें हो तो उसका समस्त कामोंमें मूर्खता आवे, दरिद्रतासे दबारहे, पुण्यभी उसके घरमें न रहे १२॥ अथ शुक्रस्यावस्थाफलम् । . जनोबलीयानपिदन्तरोगीभृगौ महारोषसमन्वितः स्यात् ॥ धनेन हीनः शयनं प्रयाते वाराङ्गनासङ्गमलंपटश्च ॥१॥ जिसके जन्ममें शुक्र शयनावस्थामें हो वह मनुष्य बलवान होने परभी दन्तरोगी बडे क्रोध (गुस्सा) वाला तथा धनसे रहित रहे और वारांगनाओं (वेश्याओं) के संग करनेमें लंपट (व्यसनी) होवे। यदि भवेदुशना उपवेशने नवमाणिवजकाञ्चनभूषणैः ॥ सुखमजनमरिक्षय आदरादवनिपादपि मानसमुन्नतिः ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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