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________________ द्वादशः १२] भाषाका समेतम् । ( १२१ ) नानावाहनमानयानपटलीसौख्यं गुरावागमे भृत्यापत्यकलत्रमित्रजसुखं विद्यानवद्या भवेत् । क्षोणीपालसमानतानवरतं चातीव हृद्या मतिः काव्यानन्दरतिः सदा हितगतिः सर्वत्र मानोन्नतिः८॥ बृहस्पति आगमावस्था में हो तो अनेक प्रकारके वाहन (हाथी, घोडे, रथ आदि) मान और यान ( पालकी आदियों) के समूहका सुख होवे, तथा सेवक (नौकर ) पुत्र, स्त्री, मित्रोंका सुख मिले, दोषरहित विद्या आवै, राजा के समान ऐश्वर्य में सर्वदा रहे, अतिरमणीय बुद्धि होवे, काव्यरसके आनंदमें प्रेम रहे, सर्वदा हितकारी चाल रहे, सर्वत्र मानकी उन्नति होती रहे ॥ ८ ॥ भोजने भवति देवतागुरौ यस्य तस्य सततं भोजनम् ॥ नैव मुंचति रमालयं तदा वाजिवारणरथैश्च मण्डितम् ॥ ९ ॥ बृहस्पति भोजनावस्था में जिसके हो उसको उत्तम पदार्थ भोजनको मिलते रहें तथा उसके घोडे, हाथी, रथोंसे युक्त घरको लक्ष्मी कदापि न छोडे ॥ ९ ॥ नृत्यलिप्सागते राजमानी धनी देवताधीशवन्द्ये सदा धर्मवित् ॥ तन्त्रविज्ञो बुधैर्मण्डितः पण्डितः शब्दविद्यानवद्यो हि सद्यो जनः ॥ १० ॥ बृहस्पति नृत्यलिप्सावस्था में हो तो मनुष्य राजमानवाला, धनवान् सर्वदा धर्म जाननेवाला, तन्त्रशास्त्र वा युक्तियाँ जाननेवाला पंडितोंसे युक्त रहे आपभी पंडित होवे (शब्दविद्या ) व्याकरणादिमें निपुण तत्काल उपस्थितिवाला होवे ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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