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________________ द्वादशः १२] भाषाटीका समेतम् । ( ११५) वाला होवे, तथा सर्वदा नीचकर्म करे, मान ( अहंकार वा इज्जत ) से रहित रहे ॥ ९ ॥ नृत्यलिप्सागते भूसुते जन्मिनामिन्दिराराशिरायाति भूमीपतेः ॥ स्वर्णरत्नप्रवालैः सदा मण्डिता वासशाला विशाला नराणां भवेत् ॥ १० ॥ मङ्गल नृत्यलिप्सा अवस्थामें हो तो मनुष्योंको राजासे बहुत लक्ष्मी (धन) आवे तथा रहनेका गृह सर्वदा सोना, रत्न, मूङ्गा आदियोंसे शोभित और बहुत भारी होवे ॥ १० ॥ कौतुकी भवति कौतुके कुजे मित्रपुत्रपरिपूरितो जुनः ॥ उच्चगे नृपतिगेहपण्डितो मण्डितो बुधवरैर्गुणाकरैः ॥ ११ ॥ मङ्गल कौतुकावस्था में हो तो मनुष्य खेल तमासा करनेवाला वा उसमें प्रेम रखनेवाला होवे, मित्र, पुत्रोंसे परिपूर्ण रहे, यदि मङ्गल उच्चकाभी हो तो राजाके दबरका पंडित होवे और बहुत गुणवान् पंडित श्रेष्ठों से शोभित रहै ॥ ११ ॥ निद्रावस्थागते भौमे क्रोधी धीधनवर्जितः ॥ धूर्तो धर्मपरिभ्रष्टो मनुष्यो गदपीडितः ॥ १२ ॥ मङ्गल निद्रावस्था में हो तो मनुष्य क्रोधी होवे, बुद्धि तथा धनसे वर्जित रहे, धूर्त होवे, धर्मसे भ्रष्ट रहे और रोग से पीडित रहे ॥ १२ ॥ अथ बुधावस्थाफलानि । क्षुधातुरो भवेदङ्गे खओ गुञ्जानिभेक्षणः ॥ अन्यभे लंपटो धूर्तो मनुजः शयने बुधे ॥ १ ॥ बुध शयनावस्था में लग्नका हो तो भूखसे सर्वदा आतुर रहे, लँगडा होवे, नेत्र लाल गुआके समान होवें और उक्त अवस्थाका अन्यभावों में हो तो लंपट ( लोभी) और धूर्तभी होवे ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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