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________________ DPPR (११४.) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्आगमने गुणशाली मणिमाली करालकरवाली ॥ गजगंता रिपुहंता परिजनसंतापहारको भौमे ॥६॥ मंगल आगमनावस्थामें हो तो पुरुष अनेक गुणोंसे युक्त हो मणियोंकी माला पहिने, तीक्ष्ण खड्गोंको धारण करनेवाला हो, हाथीकी सवारी करे, शुत्रुको मारे, आत्मीय जनोंका सन्ताप हरण करनेवाला होवे ॥६॥ तुङ्गे युद्धकलाकलापकुशलो धर्मध्वजा वित्तपः कोणे भूमिसुते सभामुपगते विद्याविहीनःपुमान्॥ अन्तेऽपत्यकलत्रमित्ररहितः प्रोक्तेतरस्थानगेडवश्यं राजसभाबुधो बहुधनी मानी च दानी जनः७ उच्चराशिका मङ्गल सभावस्थामें हो तो युद्धविद्याकी समस्त युक्ति जाने, तथा धर्मका ध्वज अर्थात् बडा धर्मात्मा और धनवान् (धनका स्वामी) होवे । यदि ९।५ स्थानमें हो तो पुरुष विद्याहीन (मूर्ख) होवे,बारहवें स्थानमें हो तो स्त्री,पुत्र, मित्रोंसे रहित रहें, उक्त स्थानोंसे अन्यमें हो तो अवश्य राजाके सभाका पंडित होवे, तथा बहुत धनवान्, मानवाला, दानी भी होवे ॥७॥ आगमे भवति भूमिजे जनो धर्मकर्मरहिवोगदातुरः ॥ कर्णमूलगुरुशूलरोगवानेव कातरमतिः कुसंगमी॥८॥ मङ्गल आगमावस्थामें हो तो धर्म कर्मसे रहित, रोगसे आतुर रहे, कानके नीचे बडा शूलरोग रहै, कायर तथा कुसङ्गी होवे८॥ भोजने मिष्टभोजी च जनने सबले कुजे॥ नीचकर्मकरो नित्यं मनुजो मानवर्जितः॥९॥ जन्ममें बलवान् मङ्गल भोजनावस्थामें हो तो मिष्टान्न खाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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