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________________ ( ११२ ) भावकुतूहलम् । [ ग्रहावस्थाफलम् - बली चंद्रमा नृत्यलिप्सा अवस्था में हो तो मनुष्य बलवान् होवे गीत (गायन) जाने, शृंगारादिरसोंको जाने और कृष्णपक्षका चन्द्रमा हो तो पाप करनेवाला होवे ॥ १० ॥ कौतुकभवनं गतवति चन्द्रे भवति नृपत्वं वा धनपत्वम् ॥ कामकलासु सदा कुशलत्वं वारवधूः रतिरमणपटुत्वम् ॥ ११ ॥ चंद्रमा कौतुकावस्था में हो तो मनुष्य राजा होवै; अथवा धनका मालिक होवे और कामकला ( रतिक्रीडामें ) सर्वदा चातुर्य रक्खे, वारांगनाओंके साथ रतिक्रीडामें चातुर्य पावै ॥ ११ ॥ निद्रागते जन्मनि मानवानां कलाधरे जीवयुते महत्त्वम् ॥ यदाऽगुणाः संचितवित्तनाशः शिवालये रौति विचित्रमुज्ज्ञैः ॥ १२ ॥ यदि मनुष्यों के जन्मसमय में पूर्णचन्द्रमा बृहस्पतियुक्त निद्रावस्थामें हो तो महत्त्व (बडप्पन ) पावे, कृष्णपक्षका हो तो गुण अवगुण होवें, संचय किये हुए धनादिका नाश होवे दुःखसे शिवालय (शिवमंदिर) में अनेक प्रकार के स्वरोंसे ऊंचा रोदन करे यद्वा उसके गृहमें स्यार अनेक प्रकार के स्वरोंसे ऊंचा रोदन करें अर्थात् शोक, दरिद्रसे ग्रस्त होवे ॥ १२ ॥ अथ भौमस्य फलम् । शयने वसुधापुत्रे जन्मकाले जनो भवेत् ॥ बहुना कण्डुना युक्तो दगुणा च विशेषतः ॥ १ ॥ जन्मसमयमें मंगल जिसका शयनावस्था में हो उसके अंगों में बहुतसी कण्डु (खुजली) रहाकरे, विशेषतः (दद्रु) दाद भी होवे ॥ १ ॥ यदाङ्गनासंचितवित्तनाशः६०पा० । स्त्रीका नाश और सञ्चित धनका नाश होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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