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________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (१११) चंद्रमा आगमनावस्थामें हो तो मानी (इजत यद्वा गर्ववाला) होवै, पैरोंमें रोग रहे गुप्तपाप करनेमें तत्पर रहे, दुःखी होवै, बुद्धि और संतोषसे वार्जत रहे ॥ ६॥ . सकलजनवदान्यो राजराजेन्द्रमान्यो रतिपतिसमकान्तिः शान्तिकृत्कामिनीनाम् ॥ सपदि सदास याते चारुबिंबे शशाङ्के भवति परमरीतिप्रीतिविज्ञो गुणज्ञः ॥७॥ पूर्ण चंद्रमासभावस्थामें हो तो मनुष्य समस्त मनुष्योंमें वदान्य (चतुर ) होवै, राजा तथा चक्रवर्तियोंका माननीय होवै, कामदेवके समान सुंदरकांति होवै,युवास्त्रियोंको कामक्रीडामें शांति करनेवाला होवे, प्रेमकला जाननेवाला होवे, गुणोंको पहिचाने ॥ ७॥ विधावागमने मत्यों वाचालो धर्मपूरितः॥ कृष्णपक्षे द्विभार्यः स्याद्रोगी दुष्टतरो हठी॥८॥ चंद्रमा आगमनावस्थामें हो तो अतिबोलनेवाला, धर्मसे परिपूर्ण होवै, यदि कृष्णपक्षका चंद्रमा उक्त अवस्थामें हो तो दो स्त्री होवें, रोगी रहे, अतिदुष्ट स्वभाव और हठ करनेवाला होवै ॥ ८ ॥ भोजने जनुषि पूर्णचंद्रमा मानयानजनतासुखं नृणाम् ॥ आतनोति वनितासुतासुखं सर्वमेव न सितेतरे शुभम् ॥९॥ जिनको जन्मकालमें पूर्णमंडल चंद्रमा भोजनावस्थामें हो वह मानवाला होवै, सवारी तथा मनुष्योंका सुख पावै, तथा स्त्रीसुख कन्यासुख भी होवै और कृष्णपक्षमें नहीं होते ॥९॥ नृत्यालिप्सागते चन्द्रे सबले बलवानरः॥ गीतज्ञो हि रसज्ञश्च कृष्णे पापकरो भवेत् ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034482
Book TitleBhavkutuhalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivnath Shambhunath Maithil
PublisherGangavishnu Shreekrushnadas
Publication Year1931
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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