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________________ [ ५३२ ] कारणोंसे कल्याणकत्वपना सिद्ध करके पाठक गणको यहां दिखाया तथा इन्हीं महाराजके वचनानुसार श्रीस्थानांगजी तीसरे अङ्गको वृत्तिके वाक्यसे और श्रीकल्पसूत्रादि अनेक शास्त्रोंके वाक्योंसे छ कल्याणक श्री वीरप्रभुके प्रत्यक्षपने सिद्ध होते भी ऐसा कौन श्रीजिनाझा विराधक भारीकर्मा निर्लज्जहोगा सो शास्त्र प्रमाण और युक्तिपूर्वक प्रत्यक्षसिद्ध बातको भी निषेध करके अपने गच्छकदाग्रहके हठवादके मिथ्यात्वको स्थापन करनेका परिश्रम करके भोले जीवोंको भ्रमानेके लिये आगेवान होगा जिसकी तो अब थोड़े ही समय में यह ग्रन्थ प्रगट हुए बाद परीक्षा हो जावेगा और भी पाठकवर्गको विनय विजयजीकी धर्म ठगाईकी मायाचारीका नमूनादिखाता हूं, कि देखो खास आपने ही श्री कल्पसूत्रके मूलपाठानुसार सौधर्मेन्द्र ने भगवान्‌को ब्राह्मण कुलसे क्षत्रिय कुल में पधारने का किया सो आचाररूपी धर्म तथा कल्या याकारी है इसलिये गर्भापहार करना निश्चय करके युक्तही है ॥ ऐसा लिखा- जिसका पाठ भावार्थ सहित उपर में ही छप गया है और फिर ऋषभदत्त ब्राह्मणके घर से सिद्धार्थ राजाके घर में भगवान्के पधारनेकी व्याख्या करते विशेष करके १ श्लोक में " भव्यजीवोंका कल्याण करनेवाले श्रीवीरप्रभु अच्छा मुहूर्त्त देखकर ब्राह्मण के घरसे सिद्धार्थ राजाके घरे पधारे" ऐसे मतलबकी व्याख्या करी सो श्लोक भी इसीही ग्रन्थके पृष्ठ ५०४ में छप गया है। अब इस जगह परभी विवेकी सज्जनोंको पक्षपात रहित हो करके न्याय दृष्टिसे विचार करना चाहिये कि - देवानन्दा ब्राह्मणीके उदरसे त्रिशला क्षत्रियाणीके उदरमें इन्द्रने भगवान्‌का पधारमा किया सोही गर्भापहार होनेको खास आप विनय विजयजी ही अपनी बनाई बौधिका में प्रगटपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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