SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५३१ ] उसीको च्यवन कल्याणक मानना छोड़कर आश्विन बदी १३ को त्रिशला माताके उदर में भगवान् पधारे उसीको च्यवन कल्याणक मान्यकर लेवें, क्योंकि-नीच गोत्रके विपाकसे आश्चर्यरूप तथा ब्राह्मण लोगोंसे जैनियोंकी निन्दापूर्वक मिथ्यात्व बढ़नेका कारण तो आषाढ़ शुदी ६ को देवानन्दा माताके उदर में भगवान् उत्पन्न हुए सो वहां जन्म होनेसेही होता जिसको अर्थात् उपरकी सब बातों को मिटाने के लिये त्रिशला माताके उदरमें पधारे हैं इसीलिये तो उपरोक्त शास्त्रकार महाराजने उसीको भवकी गिनती में लिया ॥ इस जगह परभी विवेकी तत्त्वज्ञोंको न्याय दृष्टिसे विचार करना चाहिये कि-जब त्रिशलामाताके उदरमें भगवान् पधारे तब ही तीर्थंकर भगवान् उत्पन्न होने सम्बन्धी चौदह स्वप्नोंका विस्तारसे वर्णन वगैरह कार्य भी सिद्धार्थ राजाके वहां हुए इसलिये आश्विन बदी १३ को भगवानके उत्पन्न होनेको च्यवन कल्या. णकत्वपना निश्चय करके निःसन्देहता पूर्वक स्वयं सिद्ध हो चुका, इसलिये आश्विन बदी १३ को त्रिशला माताके उदर में भगवानका पधारना हुआ सो गर्भापहाररूप च्यवन कल्याणकको शास्त्र वाक्य प्रमाण करनेवाले आत्मार्थी तो कोई भी कदापि काले निषेध नहीं करेगा परन्तु दीर्घ संसारी मिथ्यात्वियोंके अन्तरका हठवादको तो तीर्थंकर गणधर भी छोड़ाने समर्थ नहीं होसकते तो मेरा लिखना किस हिसाबमें अर्थात् उपरका मेरा लेख सत्यग्रहणाभिलाषी श्रीजिनामाके आराधकोंको तो हितकारी होगा नतु अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी दुर्लभबोधिजनोंको और सर्वगच्छवालोंके माननीय पूज्य श्रीअभयदेव सूरिजीके वच• नानुसारश्रीसमवायांगजी चौधे अङ्गकी शत्तिके वाक्यसे आश्विन बदी १३ को विशलामाताके सदर में भगवान् पधारनेको उपर्यत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy