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________________ [ २ ] नवांगी एत्तिकार श्रीखरतर गच्छनायक अप्रसिद्ध भीमदभपदेव सूरिजी महाराजने श्रीसमवायांगजी सूत्रकी इत्ति देवानन्दा माताके उदरसे त्रिशला माताके उदर में भगवानके पधारने रुप गर्भापहारको उत्तम प्रकारके भवकी गिनती में लिया है इस लिये गर्भापहार निन्दनीक नहीं हो सकता है किन्तु उत्तम तो प्रत्यक्षही सिद्ध होता है अब इस अवसरपर श्रीगणधर महाराजकृत श्रीसमवायांगजी सूत्रका तथा श्रीअभयदेव सूरिजी महाराजकृत उसीकी वृत्तिका पाठ यहां दिखाता हूं सो धनपति सिंह बहादुरके आगम संग्रह भाग चौथे में श्रीसमवायांगजी सूत्रत्ति सहित छपकर प्रसिद्ध हुआ है जिसके पृष्ठ १६६।१६७ का पाठ नीचे मुजब है यथा समणे भगवं महावीरे तित्थगर भवग्गणाओ छठे पोटिल भवग्गहणे एगवासकोडि सामन्न परियागं पाउणित्ता सहा सारे कप्पे सब्बठ विमाप देवत्ताए उववन्ने ॥ व्याख्या-समणेत्यादि किल भगवान् पोटिलाभिधानो राजपुत्रो बभूव तत्र वर्षकोटि प्रब्रज्यांपालितवानित्येकोभवः । ततो देवो भूदिति द्वितीयः । ततो नंदनाभिधानोराजसूनुः छत्रा नगर्या जज्ञ इति तृतीयः। तत्र वर्ष लक्षम् सर्वदामास क्षपणेन तपस्तप्त्वा दशम देवलोके पुष्पोत्तर वरविजय पुंडरीका भिधाने विमाने देवोभवदिति चतुर्थः । ततो ब्राह्मण कुड पामेऋषभदत्त ब्राह्मणस्य भार्याया देवानंदाभिधानायाः कुक्षावुत्पन्न इति पंचमः । ततोदयशीतितमे दिवसे क्षत्रिय कुंड ग्रामेनगरे सि. द्वार्थ महाराजस्य त्रिशलाभिधान भार्यायाः कुक्षाविन्द्रवचन कारिणा हरिनैगमेषिनाना देवेन संहृतोनीतस्तीर्थकरतयाच जात इति षष्ठः। उक्त भवग्रहण हि विना नान्यद्भवग्रहण षष्ट अ यते भगवत इत्येतदेव षष्ठभवग्रहण तया व्याख्यातं यस्माच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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