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________________ [ ५२६ ] कलडीत करते रहते और राज्यवंशी उत्तम क्षत्रिय शूरवीरोंका जैनधर्मको हाणी पहुंचाते सोही जैनियोंको परम लज्जाका कारण होनेसे अतीव निन्दनीक था सो इन्द्र महाराजने मिटानेके लिये सिद्धार्थ राजाके घरे उत्तम कुलमें भगवान्को पधारनेका अतीव श्रेष्टकार्य करके राज्यवंशी उत्तम क्षत्रिय शूर वीरोंका जैनधर्मको कलङ्क रहित कायम रख्खा और लज्जाके निन्दाके तथा ब्राह्मणोंसे मिथ्यात्व बढ़नेवाली बातके कारणको जड़ मूलसे काटडाला उसी कारणकोही विनयविजयजीने अति निन्दनीक कहा तथा अधपरंपराके मिथ्यात्वसै वर्तमानिक तपगच्छीय कदाग्रही लोग हरवर्षे कहते रहते हैं। हा अतीव खेदः। विवेक विकल विद्वत्ताभासोंके सत्यज्ञान रूपी अन्तर चक्षुको गाढ़ मिथ्यात्व रूप अतीव अन्धकारके पहलोंने कैसी दृढ़ता करलीहै सो सत्य बातका निषेध करने के लिये संसार वृद्धिका हेतूभूत उत्सूत्र भाषण और श्रीवीरप्रभुकी निन्दा करते हुए भी सत्यवादी शुद्ध प्ररूपक बनते हैं सो तो भारी कम प्राणियोंके लिये पाखण्ड पूजा नामक अच्छेरेका कलयुगी प्रकाश ही मालूम होताहै इसको विशेष करके विवेकी तत्त्वातजन स्वयं विचार लेगे, और चौथा यह है कि गर्भापहारको अति निन्दनीक वगैरह विशेषण लगा करके कल्याणकत्वपसे विनयविजयजीने निषेध किया तथा वर्तमानिक लोग करते हैं सोतो निम्केवल अपने गच्छपक्षके आग्रहसे उत्सूत्रभावण करके भोले जीवोंको अथाही निध्यात्वके भ्रममें गैर कर संसार इद्विका हेतु करके अपनी आत्मसाधनके सम्यकत्व रूपी सरल रस्ताको भूल करके मिथ्या. स्व विकट थमने फिरनेका कारण करते हैं क्योंकि-श्रीगणपर .महाराज श्रीधर्मस्वामीजीने श्रीसमवायांगजी में तथा भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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