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________________ रोपनेका लक्षण है क्योंकि दीर्घससारीक सिवाय तीकर गणधरादि महाराजोंके कथनका आत्मार्थी कोईभी उपरक अनुचीत शब्दोंसे कदापि निषेध नहीं करेगा इस बातको विशेष करके पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे और दूसरा यह है कि-चौदह पूर्वधर भुतकेवली श्रीभद्र बाहुस्वामीजीने श्रीकल्पसूत्र में माहणकुडनगरके ऋषभदत ब्राह्मणकी देवानन्दा ब्राह्मणीकी कूक्षिमें भीवीरप्रभु भाकर उत्पन्न हुए उसीकोही कुल मदके कारणसे अच्छेरा कहा और उसीकोही आषाढ़ शुदी ६का च्यवन कल्याणकभी शास्त्रकारोंने माना है तथा सब कोई मानते भी हैं इसलिये नीच गौत्रका विपाक रूप कह करके अच्छेरेके बहाने गर्भापहारको कल्याराकरवपनेसे विनय विजयजीने निषेध किया सो भोले जीवोंको भ्रमानेके लिये अजामतासे या अभिनिवेशिक मिथ्याविसे उत्सूत्रभाषख करके अपनो विद्वत्ताकी वृथा ही हासी कराई है तो विवेकी तत्वजन स्वयं विचार लेवेगे। __ और अब पाठक वर्मको निःसन्देह होनेके लिये उपरकी बात सम्बन्धी श्रीकल्पसूत्रका पाठभी दिखाता हूं-लपाहि। • तएणं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो, अयमेआसवे अभस्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए सकप्पे समुप्पज्जित्था-न एयंभू,नएयंभवं,नएयंभविस्संति,जन्नं अरिहन्तावा,चक्कवरी वा,बलदेवावा,वासुदेवावा । अतकुलेमुवा पंतकुलेमुवा, तुच्छकु. लेडवा, दरिदकुलेगुवा, किविण कुलेगुवा, भिख्खाग कुलेखवा मारणकुलेखुबा, आयामुवा,माया तिवा,आयाइसन्तिवा, एवं खन् । अरिह बावा, चक्कवहीवा, बलदेवावा, वासुदेवावा, सग कुलेसुवा, भोग कुलेसुवा, राइम्न कुलेसुवा, इस्खागु कुलेसुवा, खत्तिय कुलेसुवा, हरिवंस कुलेखवा, अग्नयरहवा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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