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________________ [ ५१५ ] और इतने परभी श्रीपंचाशकजी में छठे कल्याणकको न लिखने से न माननेके आग्रह करनेवाले विद्वत्ताभास विवेक शून्योंकों तो श्रीस्थानांगजी सूत्रके पाठानुसार मोक्ष कल्याणक भी नहीं मानना पड़ेगा क्योंकि वहां पंचम उट्ट शेके पाठ तो केवलज्ञान पर्यन्त पांचकल्याणक लिखकर मोक्षको नहीं लिखा है तो क्या तपगच्छीय विद्वान् लोग केवलज्ञान पर्यन्त श्रीवीर प्रभुके पांच कल्याणक मान्यकर के छठे मोक्षको नहीं मानेगे तो क्या अभीतक वीर प्रभुको विद्यमान, तपगच्छवाले मानते हैं यदि विद्यमान मानते होवे तबतो हम लोगों को भी प्रभुकै दर्शन कराने चाहिये और दूसरे शास्त्रों में चौथे आरके अन्त में श्रीवीर प्रभुका मोक्ष लिखा है सो वृथा हो जावेंगा और यदि श्रीस्थानांगजी सूत्रके बिना दूसरे शास्त्रानुसार श्रीवीर प्रभका मोक्ष कल्याणकका लिखना तपगच्छीय लोग सत्य मानते होवे तब तो श्रीपंचाशकजीके बिना दूसरे शास्त्रानुसार छठे कल्याणक कोभी मानना पड़ेगा और दूसरे शास्त्रोंके प्रमाण मुजब छठे कल्याणकको मान्य करेंगें तो श्रीपंचाशकजीके नामसे छठे कल्याणकका निषेध किया सो प्रत्यक्ष मायाचारीको धर्मध तई सिद्ध हो जावेगी इसलिये तपगच्छीय आत्मार्थो विवेकी पुरुषों से मेरा यही कहना है कि पक्षपातका मिथ्या हठवाद छोड़कर के न्यायकी सत्य बातको प्रमाण करने में तत्पर होना चाहिये और नय गर्भित अपेक्षा सम्बन्धी शास्त्रकारोंके वाक्योंका तात्पपर्थ गुरुगम्यसे बिना समझे या समझते हुए भी अपने पक्ष में भोले जीवोंको गैरनेके लिये हठवादसे बातको विपरीत खेचना सोतो संसारपरिभ्रमणका हेतु भवभीरुओंको करना उचित नहीं है क्योंकि जैसे श्रीस्थानांगजी सूत्र में छठे मोक्ष कल्याणक के लिखनेका पंचमस्थान में सम्प्रन्ध नहीं होने से नहीं लिखा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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