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________________ [ ४ ] 'साइणा परिनिव्वुडे मयवंत्ति' स्वाति नक्षत्रे मोक्ष गतो भगखान् ॥ इस तरहकी व्याख्या करो है और इसी तरह से मध्यम वाचनामै सी- च्यवन, गतवहार, जन्म, दीक्षा, ज्ञान, मोक्ष, इन छहों वस्तु तथा स्थानोंके छहों नक्षत्रोंका खुलासा लिखा है जिसका सब पाठ तो इसी ग्रन्थ के पृष्ठ ४६२ ४६३ मैं छप गया है और उत्कृष्ट वाचनायें तो व्यवन, गर्भापहार, जन्मादिकके मास, पक्ष, तिथिपूर्वक विस्तार से व्याख्याकरी है सो व्यवमादि पांच हस्तोत्तरा नक्षत्रमें और छठा मोक्ष स्वाति नक्षत्र में यह द वस्तु तथा स्थान शब्दका श्रीतीर्थं कर महाराज के चरित्र की आदिमेंही प्रसंगसे तथा तात्पर्यार्थ से कल्याणकका ही अर्थ निकडनेसे तो श्रीवोरप्रभुके छ कल्याएक सिद्ध होगये जिससे अपने मंतव्य में विरोध आने लगा तब विनयत्रिजयजीने ( ननु पंच हत्थुत्तरे साइया परिनिघुडे इत्यनेन श्रीमहावीरस्य षट् कल्याणकत्व सम्पन्नमेव ) इस तरहका प्रश्न बनाकर के उसीका निषेध करनेके लिये 'मैत्र' एवं उच्यमाने उसमेगं अरहा इत्यादि' वाक्य लिखके शास्त्राकार महाराजों के विरुद्धार्थ में उत्सूत्र भाषणों का तथा कुयुक्तियों के विकल्पों का संग्रह करके श्रीवीरप्रभुको अवज्ञा करते हुए निजपरको दुर्लभबोधिका कारणरूप अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे भोले जीवोंको गच्छ कदाग्रहका भ्रम में फसाने के लिये इतना परिश्रम किया क्योंकि वस्तु तथा स्थान शब्द कल्याणकका अर्थवाला जो विनयविजयजी मान्य नहीं करते तो छ कल्याणकों की सिद्धिसे उसीके निवेध करने की चर्चाका प्रसंग कदापि नहीं लाते परन्तु लाये इसीसे ही विवेकी तत्वज्ञ तो स्वयं विचार सकते है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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