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________________ [४ ] पोपहारके कल्याणककी तरहराज्याभिषेक कल्याणक नहीं हो सकता है इसका खुलासाके साथ श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसत्रकी सुत्तिने व्याख्य.करीहै जिसका सब पाठ भी न्यायामोनिधिजीके छ कल्याण निषेध सम्बन्धी लेखकी समीक्षा आगे डिखंगा वहां दिखाने में आवेगा। __और (श्रीआचारांग टोका प्रभृतिषु पंच हत्थुत्तरे इत्यत्र पंच वस्तून्येव व्याख्यातानि नतु कल्याणकानि) इन अ. क्षरों करके श्रीआचारांगजी सत्र की वृत्ति वगैरह शास्त्रों में 'पंच हत्थुत्तरे' शब्दको ब्याख्या करते वृत्तिकारने पांच वस्तु कहो हैं परन्तु पांच कल्याणकनहीं कहे। इस तरहका लिखके विनयविजयजीने श्रीवीर प्रभुके चरित्राकीआदिमें ही कल्याणकाधिकारे पांचों कल्याणकों का अभाव दिखाया सो वो अपने गच्छ कदाग्रहका हठवाद स्थापन करनेके लिये अभिनिवेशिक मिथ्यात्व करके भोले जीवों को भी उसीके चम में गेरने के लिये विचित्र मायाचारीका नमूना प्रगट पने मालूम होता है क्योंकि देखो खास आपनेही श्रीकल्पसूत्रकी सुबोधिकात्ति में वर्तमानिक. शासनमें मंगलिकके लिये जधन्य मध्यम उत्कृष्ट वाचना पूर्वक श्रीवीरप्रभुका चरित्रकबन करते उसीकी आदिमेंही "तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे हुत्या ॥ तथा साइणा परिमिछुढे प्रयवं" इस मूल सत्रके पंक्तिकी व्याख्या करते श्रीव मानवामिनः घण्णां च्यवनादि वस्तूनां कारणं बभूव इत्यादि तथा॥ पंच हत्थुत्तरेत्ति, हस्तोत्तरा उत्तरा फाल्गुन्यः गणन्या ताभ्यो हस्तस्यउत्तरत्वात् ताः पंचम स्थानेषु ..बस्य त पंच हस्तोत्तो भगवान्, होत्थत्ति, अभवत् ॥और॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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