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________________ [ ४५५ ] यं, वैशाख शुद्ध दशमीति चतुर्थं च शब्दशमुच्चयार्थः - कार्तिक कृष्णेचर्मा पंचदशोति पंचमं एतानि इति आह-गर्भादिदिनानि ९ गर्भ २ जन्म ३ निःक्रमण ४ ज्ञान ५ निर्वाणदिवसा यथाक्रमं क्रमेणैव तान्यनंतरोक्ता न्येषां च मध्ये हस्तात्तरयोगेन हस्त उत्तरोयासां हस्तापलक्षिता वा उत्तरा इस्तात्तरा फाल्गुनन्येताभिःयोगः सबंधश्चेति हस्तात्तरा यागस्तेन कर्णभुत्तेन चत्वारि आद्यानिदिनानि भवंति तथेतिसमुच्चये स्वातिना स्वाति नक्षत्रेणयुक्तञ्चरमेाति धर्म कल्याणिकं दिनं, इति गाथा द्वयार्थः- देखिये ! इसमें अभयदेवसरिजीने खास तीर्थंकर महावीरस्वामी पांच कल्याणक फरमाये अगर जैन शास्त्रो में & कल्याणक होते तो नव अंगशास्त्रको टीका करने वाले महाराज अभयदेवसूरिजी खुद पांच कल्याणक क बयान करते ] - न्यायरत्नजी श्रीशांतिविजयजी के उपर केलेखको समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि हसज्जन पुरुषोदेखो न्याय रत्नजीने उपरकेलख में सूत्रकार तथा वृत्तिकार महाराजके अभिप्रायके विरुद्धार्थमें बालजीवोंको भ्रममें गेरनेके लिये पूर्वा परके सविस्तारवाले पाठको छोड़कर बिनासंबधका अधूरा पाठ भोले जीवोको दिखाकर श्रीवीरप्रभुके पांचकल्याणकों को स्थापन करके अच्छेरेकी भांति छ कल्याणकों का निषेध किया सो उत्सूत्रमाषणरूपहै क्योंकि अच्छे है तो भी कल्याणकत्वमें गिनकरके श्री वीरप्रभुके छ कल्याणक श्री तीर्थंकर गणधर - पूर्वधरादि महाराजांने अनेकशास्त्रों में खुलासापूर्वक कहे हैं सोही दिखाता हूं यथा; -- - श्री सीमन्धरस्वामीजी भगवान् ने श्रीआचारांगजी सूत्रकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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