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________________ [ ७६ ] माननेका निषेध करने वालोंकी कुयुक्तियों विकल्पोंकी सब शङ्काओं को निवारण करने में यह ग्रन्थ समर्थ ही है इसलिये तत्वाभिलाषी जन स्वयं समझ लेवेंगे और श्रीजिनवल्लभ वाचना चार्यने चेत्यवासी अपने गुरूकी आज्ञा लेकर श्रीनवगो वृत्ति कारक श्री अभयदेव सूरीजी महाराजके पास में जैनागमोका अध्ययन किया और क्रिया उद्वार उप संपल पुनर्दिक्षा लिया है इस बातका उल्ल ेख इसी ग्रन्थ में पहले होगया है तथा श्रीगणधर सार्द्धशतक बृहदवृत्ति लघु वृत्ति गणधर सार्द्धशतकांतरगत प्रकरण, खरतर गच्छ पहावली और इतिहासिक ग्रन्थ समाचारी शतकादि देख लेना इसलिये भोजिनवल्लभ सूरिजी के क्रिया उद्धार संबन्धी झूठी कल्पना करके वैश्या सतीको निन्दा करें उसी तरह से बड़े पुरुषोंकी निन्दासे धर्मसागरजी को भी संसार भ्रमणका भय रखना उचित था खैर इस बातका विशेष निर्णय धर्मसागरजीके तथा इनके साथ वाले और इनके पिछाड़ीके अनुयाइयोंकी मिथ्यात्व के तिमिरच्छे दम करनेके लिये "हीर धर्मात्मा मिथ्यात्वतिमिरोच्छेदन मास्कर" अपर नाम “प्रवचन परीक्षा निर्णय में लिखा जावेगा ॥ इति ॥ और भी श्रीज्ञान विमल सूरिजीने 'पर्युषण महात्म्य' में छ कल्याणकका निषेध सम्वन्धी लिखा उसका भी प्रसंगवशमे घोड़ा सा निर्णय लिखना उचित समझ कर लिखता हूँ' सो उनका लेख मीचे मुजब है "श्री महाबीर स्वामीने पांच कल्याणक कह्या छे अहीयां कोई एक छ कल्याणक कहे छें ते निःकेवल भ्रान्ति छे अने तेममी मोटी भूल छे केमके धोबीश तीर्थं करना एकशोने बीस कल्याणक शास्त्र मां कह्या छे पण एक शौने एक बीस कल्याणक तो कोई शास्त्र मां देखाता नथि पछीतो श्री गुरु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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